सहरा (जंगल) - कविता - सुनीता रानी राठौर

आधुनिकीकरण में कटता सहरा,
जीव-जंतुओं का उजड़ता आसरा।

भटकते पशु पहुंचते शहर गांव में,
ढूंढते अपना भोजन घर-आसरा।

नगरीय विकास में उजरता सहरा,
कभी आग से झुलस जाता सहरा।

अंधाधुंध कटाई करें हम स्वार्थवश,
पर्यावरण को सुरक्षित रखता सहरा।

सूखी धरती पर न बादल मंडराता,
ग्लोबल वार्मिंग का बन गया खतरा। 

समय पर अब न होती कभी बारिश,
किसान उदास हो बादल निहारता।

वृक्षारोपण अभियान इंसान चलाता
पूर्वजों की अमानत न संभाल पाता।

प्रकृति की शान जीवनदायिनी है वन,
जीव-जंतुओं का संरक्षणगृह है सहरा।

सुनीता रानी राठौर - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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