जीव-जंतुओं का उजड़ता आसरा।
भटकते पशु पहुंचते शहर गांव में,
ढूंढते अपना भोजन घर-आसरा।
नगरीय विकास में उजरता सहरा,
कभी आग से झुलस जाता सहरा।
अंधाधुंध कटाई करें हम स्वार्थवश,
पर्यावरण को सुरक्षित रखता सहरा।
सूखी धरती पर न बादल मंडराता,
ग्लोबल वार्मिंग का बन गया खतरा।
समय पर अब न होती कभी बारिश,
किसान उदास हो बादल निहारता।
वृक्षारोपण अभियान इंसान चलाता
पूर्वजों की अमानत न संभाल पाता।
प्रकृति की शान जीवनदायिनी है वन,
जीव-जंतुओं का संरक्षणगृह है सहरा।
सुनीता रानी राठौर - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)