बिटिया करे सवाल - खोरठा कविता - रवि शंकर साह

बेटा होले कुल के दीपक ।
हम होलिये ज्योति गे माय।
बेटा तो बदमाशों हो झे
बेटी तो होवे झे एक गाय।

दुनिया के ई केसन रीति रिवाज
केसन झे इ समाज गे माय।
बेटा सबके छुट्टल आजादी
बेटी के गोड़ में इ बंधन काहे गे माय।

बचपन से ही हमारा टोका टोकी
रखले घर में हमरा रोकी रोकी।
भैया के देलही ढ़ेर लाड़ दुलार।
हम बेटियां के देली दुत्कार गे माय।

कहिया मिलते समानता के अधिकार
कहिया करबे भइया जैसन प्यार गे माय
कहिया बदलते बेटा बेटी के फर्क।
कहिया खत्म होते कोख में मारे के व्यापार।

दुनिया केतना आगू हो गोले गे माय
तहियो बेटी के भाग्य काहे होले पिछु गे माय।
एक बुतरू से चौका चुल्हा करलिये।
तो जै कहिले वहीं करिलये

हमर प्यार में की कमी रहले कि।
जै भेजी देलही दोसर द्वार गे माय।
कब तक दुनिया बेटी के बोझ समझते
छै कोयो जै हमरा दिये ई बताये गे माय।

रवि शंकर साह - बलसारा, देवघर (झारखंड)


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