तेरे शहर में - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव

तेरे शहर में टूटे सपने नींद अधूरी है।
सब बेदिल हैं दिल से दिल की लंबी दूरी है।।

सारा दिन मारा फिरता हूँ तेरी गलियों में ,
मिलती नहीं दो वक़्त की रोटी कम मजदूरी है।।

बाग-बग़ीचे, ख़ुशबू, शबनम, पानी और भी सब,
तेरे शहर में सबकी क़ीमत पूरी-पूरी है।।

सबकी उम्मीदें बाँध के लाया हूँ मैं दामन में,
अब वापस घर कैसे लौटूँ ये मज़बूरी है।।

मतलब की है हँसी और मतलब के नाते हैं,
तेरे शहर में दौलत से ही यार हुज़ूरी है।।

प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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