मानव स्वभाव - कविता - कुन्दन पाटिल

सोचता हूँ, खयालों मे डुब जाता हूँ।
खयाली पुलाव मन हि मन पकाता हूँ।।
अच्छे विचारों से मन प्रफुल्लित हो जाता हैं।
खुशियाँ और आनंद कि बहार ले आता हैं।।
बुरे विचारों से मन व्यथित हो जाता हैं।
मायूसी का वातावण निर्मित हो जाता हैं।।
सोचने विचारने की इसी प्रकृति को हम।
खयालों ख्वाबों से सुशोभित हम करते हैं।।
सुख दूख के विचारों से अक्सर ही हम।
विचिलत तो कभी आनंदविभोर हो जाते है।।
सोचने विचारने से हम परहेज नहीं करते।
तभी कभी गम कभी खुशी में रमते हैं।।
और यह क्रम सत्त यू ही चलते रहता हैं।
मानव का तो यह स्वभाव बन गया हैं।।
खवाबों खयालों की हमारी मनोवृती का।
हर दम हम भी सरवर्ण करते रहते हैं।।
बैठे बिठाये सुख दूख के अनुभवों का हम।
रसपान विचारों खयालों से किया करते हैं।।

कुन्दन पाटिल - देवास (मध्यप्रदेश)

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