हिन्दी का आस्तित्व - आलेख - अतुल पाठक "धैर्य"

आज की पीढ़ी हिन्दी का अस्तित्व खो रही है। जगह-जगह अंग्रेजी मीडियम विद्यालय खुल रहे हैं। हिन्दी मीडियम को आज बच्चे और अभिभावक दोनों ही कमतर आँक रहे हैं जिससे हिन्दी की मान्यता अंग्रेजी की अपेक्षा कम होने लगी है। अपने ही घर में हिन्दी पराई सी हो गई है। बच्चों को हिन्दी बोलने पर विद्यालयों में जुर्माना भी भरना पड़ता है जैसे हिन्दी बोलना कोई जुर्म हो और अंग्रेजी बोलना कितने गौरव की बात हो!

बचपन से ही बच्चे को अंग्रेजी में इस क़दर ढाल दिया जाता है कि उसे हिन्दी बोलने में शर्म सी महसूस होने लगती है। हिन्दुस्तान में आज यही हिन्दी का हाल है। आज बच्चे हिन्दी बोलकर खुद को अपमानित महसूस करते हैं वास्तव में हिन्दी आज हम सबसे अपमानित हो रही है। ज़रा सोचो क्या यह हिन्दी का अपमान नहीं है?

बड़ी सोचने वाली बात है हिन्दी को सिर्फ एक ही दिन हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। क्या सिर्फ एक दिन हिन्दी दिवस मनाने से ही हिन्दी के प्रति दायित्व खत्म हो जाता है! अगर हिन्दी को हिन्दुस्तान में सम्मान दिया होता तो हर हिन्दवासी हर रोज हिन्दी में रमाया होता और हिन्दी को बस एक निर्धारित तिथि पर ही स्मरण करने की ज़रूरत न पड़ती!

आने वाले समय में अंग्रेजीकरण को इसी तरह बढ़ावा दिया तो शायद हिन्दी का अस्तित्व ज़रूर खतरे में पड़ सकता है। 
शिक्षा की मुख्य धारा में अग्रेजी गोते मार रही है और हिन्दी खोती जा रही है। हमको हिन्दी का अस्तित्व बचाना होगा खुद खोया हुआ सम्मान दिलाना होगा।

अतुल पाठक "धैर्य" - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)

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