इतिहास - कविता - दीपक राही

इतिहास बनते नहीं,
बनाए जाते हैं,
कुछ लोग तो 
समय से लड़कर
इतिहास होते हैं।
तो कुछ लहरों से
भिड़कर इतिहास
हो जाते हैं।
इतिहास ही अतीत को
दोहराता है,
पग पग जो हो चुका 
उससे अवगत करवाता है।
तभी तो इतिहास को
सत्ता का हथियार भी
माना जाता है।
जैसी सत्ता वैसा ही,
इतिहास बनाया जाता है,
पर फिर भी सच को
नाकारा नहीं जा सकता है।
इतिहास तो इतिहास है,
हुबहू तो नहीं बनाया जा सकता है।
साजिशें भी क्या खूब हुईं ,
इतिहास को मिटाने की
मिटाने वालों की भी हसरतें
नायाब और हसीन थीं।
दूसरों को हटाकर
खुद की ताजपोशी की,
इतिहास को बदलने की
जिन्होंने है कोशिश की।
शहीदों को किताबों से 
मिटाने की हैं साजिशें,
वही आज कर रहे 
इतिहास की है किर-किरी।
न भूलें है हम उन्हें,
याद इन्हे दिलाएँगे,
तभी तो देश के इतिहास को 
हम बचा पाएँगे,
हम बचा पाएँगे।

दीपक राही - जम्मू कश्मीर

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