सबको खोकर तुझको पाए थे।
मन की इच्छा शेष नहीं थी,
ज़िन्दगी की पहली खुशी मनाए थे।
तेरे शुभ्र भाल पर लटकी अलकें,
मधुऋतु की मंद मंद चलती;
तेरी खुश्बू उर को महकाए थे।
जब पहली बार ज़िन्दगी में आए थे।
तेरी मधुर अधरों की मधुबोली,
बनी थी रति की छवि भोली।
दिव्य रूप तेरा उर के कोने को,
चाँदनी से सजाए थे।
जब पहली बार ज़िन्दगी में आए थे।
उस पल इतनी ख़ुशी मिली थी,
दिल की सारी कली खिली थी।
उन कली के पंखुड़ियों पर,
तेरी छवि बन आए थे।
जब पहली बार ज़िन्दगी में आए थे।
रजनी के तारों में तेरी छवि,
मुझे सताती थी।
उन प्यारे लम्हों में वो,
बहा ले जाती थी।
पर ! ये तो इक बहाना था;
हम स्वयं ही उसमें ख़ुद को बहाए थे,
जब पहली बार ज़िन्दगी में आए थे।
प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)