करके हरियाली, छटा निराली,
बीता सावन पावन था।
नदियाँ मतवाली, घटा कराली,
झिलमिल करता भावन था।।1।।
था तन-मन सींचा, शिव की चर्चा,
हर-हर नारा गूँजा था।
था काँवड़ कंधे, देह उमंगे,
जन-जन सारा पूजा था।। 2।।
संचार चेतना, विरह वेदना,
सोमवार दिन व्रत रखते।
ढोल झाँझर बजे, चौपाल सजे,
भाँग धतूरा शिव चखते।। 3।।
धन्य धरा धानी, अमिय रवानी,
इंद्र धनुष नभ मोह चले।
रक्षाबंधन से, शिववंदन से,
मेला कजरी खूब ढले।। 4।।
संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)