वतन मेरा - कविता - विनोद निराश

वतन मेरा प्यारा, हिन्दुस्तान है ,

यही मेरा मान, यही अभिमान है। 

गोद  में खेले है जिस, मिटटी की,

वही आज हमारी देखो पहचान है।   

ऊँचा हिमालय  मस्तक जिसका, 

प्यारा तिरंगा ही, उसकी शान है। 

ब्रहमा, बिष्णु, महेश की ये धरती, 

संस्कारों का हर पल देती ज्ञान है। 

हिन्दू, मुस्लिम व  सिख, ईसाई,

सभ्यता जिनकी, बड़ी  महान है।  

सरहदों की, हिफाज़त करने को ,

खड़े लाल भारत के, सीना तान है।

कश्मीर से, कन्याकुमारी तलक,

पूरा भारत लगे, एक समान है।  

एक देश और एक निशान से,  

भारत का जग में बढ़ा मान है। 

देश की अखण्डता की खातिर, 

वीर सैनिकों ने गंवा दी जान है। 

निराश मन में आस ले हमने  

गाया देश भक्ति का गान है।  


विनोद निराश - देहरादून (उत्तराखंड)


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