योग - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

योग रखता है निरोग

स्वस्थ तन मन

भागता है रोग।

प्रकृति का अनूठा वरदान

मांगता बस समय कि दान।

इस अनुपम उपहार का

हम करते यदि उपयोग

धन बचता, तन जचता

होता अदभुत संयोग।

बस! जरूरत है तो

इसे जीवन में उतारने की 

समय के साथ योग को

जिंदगी में ढालने की।

आइए! संकल्प लें

लोगों को प्रेरित कर

जीवन में शामिल करें,

स्वस्थ प्रसन्न रहें

स्वस्थ राष्ट्र और समाज के निर्माण में

हम भी योग के द्वारा ही सही

कुछ तो योगदान करें।


सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)


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