तमाशा बना रखा
कुछ सिरफ़िरे
ना फ़रमान
लोकतंत्र के हत्यारों ने।
अपनी मन मर्ज़ी,
थोपना, मनवाना,
अपने किरदार में,
इस कदर शामिल
कर रखा है।
जैसे जन्म से ही उन्हें मिले हो ये अधिकार।
कर्ण के कुंडल कवच
के समान।
जैसे उन्हें पैदा होते ही
महत्वकांशी दुर्योधन
की विरासत का
वरदान मिला हो।
ये निश्चित ही ऐसी
विकृत मानसिकता की
बीमारी का लक्षण है।
जो स्वम् के विनाश के
साथ साथ, समाज व
देश के हित में नहीं।
इस तरह की मानसिकता
का ना तो कोई उपाय है।
ना ही कोई आस्पताल जहाँ,
इसका इलाज हो सके।
समाज व देश में ऐसी धारणा
का वर्चस्व इस कदर बढ़ता जा रहा है।
जिसकी रोकथाम कैसे व किस प्रकार हो
यह एक ज्वलंत सवाल है।
मानव की प्रवर्ति, या महत्वाकांशी रावण की
अभिलाषाओं का विस्तार कहे।
अधिक ताकत, राजनीतिक बल,
भौतिक सुखों की लालसा,
अहंकार की क्रूरता का ये कौनसा मापदंड है।
एक सामान्य व आम
समाज व देश के व्यक्ति को
हमेशा चुनोतिपूर्ण परिस्थितियो से गुजरना होता है।
अरुण ठाकर "ज़िन्दगी" - जयपुर (राजस्थान)