संदेश
संस्मरण जीवन दान के - संस्मरण - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सर्दी का मौसम, अंधेरी रात। डॉ. शान्ति राय हॉस्पीटल के पास पी. आई,टी कोलोनी , कंकड़बाग पटना में अपने परममित्र प्रो.डॉ संतोष कुमार…
जीवन लक्ष्य - कविता - मधुस्मिता सेनापति
जीवन के लक्ष्य पूरा न हो तो तुम मन पर मत रखो गम मंजिल पाना हो तो प्रयासों को कभी मत करो कम.......!! जब लक्ष्य हो सामने तो किस…
मैं जज्बातों को शब्दों में ठीक से नहीं पिरोता हूँ - कविता - शेखर कुमार रंजन
मैं अपनी जज्बातों को शब्दों में, ठीक से नहीं पिरोता हूँ क्योंकि मुझे डर लगता है कि कहिं, जज्बात में कलम ना रो परे। मैं अपनी जज्…
हम ग़ज़ल लिक्खें - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"
ग़ज़ल कैसे कहें और, किस तरह से, हम ग़ज़ल लिक्खें। तुम्हारे सुर्ख़ होंटों, को न जब तक, हम कँवल लिक्खें। तुम्हारे होंट के, नीचे ही जो, क़…
एक स्त्री और एक पुरूष - कविता - सलिल सरोज
अमूमन क्या होता है जब एक स्त्री और एक पुरुष साथ रहने लगते हैं एक पुरुष उतना ही पाने लगता है जितना एक स्त्री खोने लगती है और इस…
गाँव का बन्दा हूँ - कविता - चंदन कुमार अभी
मैं हूँ बन्दा गाँव का , गाँव में ही रहूँगा कितना दूर भागेंगे वो मुझसे , उनका पीछा नहीं छोडूंगा। चाहें कितनी भी शिकायत हो उनसे …
एक अटूट बंधन - कविता - माधव झा
फिर ओ आया दिन सुहाना, भाई बहनो का प्यार पुराना, एक डोर में फिर से बंधेंगे, नई रिश्तो में प्रेम की धागा। सुनी न ही रहेगी कला…
हरियाली तीज मुदित सुहावन - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
श्रावणी महीना अति पावन, हरियाली छायी मनभावन। पावस ऋतु रानी बन आयी, रिमरिम मधुरिम जल बरसायी। तृतीया शुक्ल पक्ष न…
मैं तो खोया रहा अपनी वीरान जीवन में - कविता - शेखर कुमार रंजन
मैं तो हमेशा खोया रहा, अपनी वीरान जीवन में पता नहीं आजकल लोग मुझे, किताबों में क्यों? ढूंढ़ रहें हैं। मैं तो हमेशा खोया रहा, अप…
तेरे हर बात का जवाब - ग़ज़ल - नौशीन परवीन
तेरे हर बात का जवाब मेरे सवालात में ही था प्यार जताने का अंदाज तो मेरी हर बात में ही था सिर्फ घर सजाने का तसव्वुर लिये मैं जीती र…
समय की कीमत - कविता - मधुस्मिता सेनापति
समय बड़ा बलवान है टिक नहीं सकता इसके आगे कोई यह ईश्वर का तो वरदान है......!! एक बार हाथ से छूट जाने पर वक्त ना मिलती है दुबारा…
माँ की दुआ - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव
मेरी बरक़त में मेरी माँ की दुआ का है असर। हर मुसीबत में बनके ढाल वो आती है नज़र ।। माँ के आँचल में जो सोया तो नींद खूब लगी, फिर नह…
फूल से खूशबू कभी जुदा नही होती - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
फूल से खुशबू कभी जुदा नहीं होती। पाकीज़गी प्यार की बेखुदा नहीं होती । है अगर कशिशे मोहब्बत रूह की। तो बाखूदा ये गुमशुदा नहीं ह…
आज़ाद - कविता - अतुल पाठक
जब तक है जीया मूँछों पर उसके ताव था गुलामी जिसको मंज़ूर न थी वो गुलाम देश का "आज़ाद" था आँखों में अंगार जिसके वो फौला…
बरसों बाद - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
उसने आज पुकारा मुझको बरसों बाद जीभर आज दुलारा मुझको बरसों बाद क़िस्सा जो छोड़ा था दिल की महफ़िल में करके याद, सँवारा मुझको बरसों बा…
परिणीता - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सात जन्मों का मधुरिम प्यार, परिणय सूत्र बंधे संसार। जीवन की अनुपम वेला यह, सजी बेटी सोलह शृङ्गार। सज हाथ सुभग ल…
दुनिया कुछ आज कल - कविता - मधुस्मिता सेनापति
जहां कुछ बोलना न हो वहां हम सब कुछ बोल जाते हैं जहां बोलने की जरूरत हो वहां हम चुप ही रह जाते हैं........!! कोई एक गलती कर दे त…
ड्राइवर - कहानी - सीमा सिंह
"सुनो सायरा तुम दो बार स्कूटी से गिरी हो, मैं आखरी बार कह रहा हूँ, अगर आज के बाद तुमने स्कूटी को छुआ भी तो मुझ से बुरा कोई नहीं…
मेरी कलम तेरी तकलीफें लिखने को बेताब हैं - कविता - शेखर कुमार रंजन
आखिर क्यों? मेरी कलम तेरी, तकलीफे लिखने को बेताब हैं कहो तो बता दू दुनिया से की, तुझे तकलीफे मिली बेहिसाब हैं। आखिर क्यों? मेरी…
दद्दा की टुपिया - कहानी - सतीश श्रीवास्तव
दद्दा की टुपिया पूरी सोलह साल पुरानी हो चुकी थी और साल दर साल टुपिया के ऊन के रेशे तार तार होने लगे थे। यह बात भी सच है कि दद्द…
कजली तीज - कविता - अतुल पाठक
हल्की बूँदों की फुहार है ये सावन की बहार है सखियाँ संग झूलन को आईं आज कजली तीज त्यौहार है झूम उठे दिल झूम बराबर गीतों के तरान…
मस्त महीना सामण - हरियाणवी गीत - समुन्द्र सिंह पंवार
पींग - पाटड़ी ठाकै गौरी झूलण चाली बाग मै मस्त महीना सामण का वैं मस्त हुई रंग राग मै करकै हार - सिंगार नार वैं बागां के म्हां आई ज…
प्रतिभा सर चढ़कर बोलती है - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
प्रतिभा उस प्रज्ञा का नाम है जो नित्य नवीन रसानुकूल विचार उत्पन्न करती है। प्रतिभा वह शक्ति है जो किसी व्यक्ति को काव्य की रचना, …
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