हरियाली छायी मनभावन।
पावस ऋतु रानी बन आयी,
रिमरिम मधुरिम जल बरसायी।
तृतीया शुक्ल पक्ष नित सावन,
हरियाली तीज मनाती पावन।
गौरी शंकर सदा पूजती,
निज सुहाग वरदान माँगती।
पूर्ण माह सावन बिखेरती,
प्रकृति छटा सुष्मा उलेड़ती।
सदा सुहागन हरित भरित हो,
तीज व्रती नित पति निहारती।
रची मेंहदी चारु हाथ में,
हरी चूड़ियाँ पहन साथ में।
हरे रंग की पहन साड़ियाँ,
सुहाग कपाल हरी बिंदियाँ।
पति दीर्घायु स्वस्थ रहें नित,
पहन हरित रंग मंगल भावन।
सन्तति सुख देता यह सावन,
कामुक भाव जगा रति भावन।
हरियाली तीज मुदित सुहागन,
सज सोलह शृङ्गार सुहावन।
बिखरे हरित सावन नवरंग,
हरीतिम सुहागन भरे तरंग।
सावन मास सदा सुखदायी,
सावन वृष्टि घटा बरसायी।
छटा निराली मधु श्रावणी,
सुहाग हरित वसन हर्षायी।
भगवान शिव की भक्ति बयार,
सुहावना प्राकृतिक उपहार।
संतापित भीषण गर्मी से,
राहत रिमझिम वृष्टि फूहार।
वैज्ञानिक आधार तीज का,
बुद्ध प्रबल होता हरियाली।
मानक बुद्धि समृद्धि प्राप्ति का,
साजन दिल जीती बन आली।
शास्त्रों में नारी प्रकृति समा,
माना सावन सुन्दर प्रतिमा।
हरियाली बन जीवन उमंग,
स्फूर्ति सुयश पति भरे नवरंग।
हरियाली चादर प्रकृति लिपट,
गणवेष हरित सज धजी निरत।
पाणि हरित चूड़ियाँ मेंहदी,
प्रियतम भावन ललाट बिन्दु।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली