हम ग़ज़ल लिक्खें - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"

ग़ज़ल कैसे कहें और, किस तरह से, हम ग़ज़ल लिक्खें।
तुम्हारे सुर्ख़ होंटों, को न जब तक, हम कँवल लिक्खें।

तुम्हारे होंट के, नीचे ही जो, क़ातिल सा इक तिल है,
कि दिल करता है, बस उस पर ही अपनी, हर ग़ज़ल लिक्खें।

तुम्हारे खूबसूरत मरमरी गोरे बदन को हम,
तराशा है जिसे, मन से वही बस, इक महल लिक्खें।

तुम्हारी इस मुहब्बत की हसीं बारिश को ए जानां,
बड़ी शिद्दत से मांगी थी दुआ उसका ही फल लिक्खें।

दिलशेर "दिल" - दतिया (मध्यप्रदेश)

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