गाँव का बन्दा हूँ - कविता - चंदन कुमार अभी

मैं हूँ बन्दा गाँव का , 
गाँव में ही रहूँगा
कितना दूर भागेंगे वो मुझसे , 
उनका पीछा नहीं छोडूंगा।
चाहें कितनी भी शिकायत हो उनसे , 
पर उनकों नहीं कहूँगा 
क्योंकि , मैं हूँ बन्दा गाँव का , 
गाँव में ही रहूँगा।

अब अच्छा नहीं लगता हूँ उनकों , 
ये तो मुझे भी पता है।
दिल ने उनको अपना समझा , 
ये दिल की ही ख़ता है।
लाख तकलीफ वो दे-दें मुझको, 
मैं हर तकलीफ सहूँगा।
क्योंकि , मैं हूँ बन्दा गाँव का,
गाँव में ही रहूँगा।

भूल कर भी वो मुझे
भुला नहीं पाएँगे।
याद बनकर उनको हम,
हमेशा ही सताएँगे।
इक न इक दिन वो मेरी,
इस महफ़िल में आएँगे।
मैं उनके ज़हनों दिल में,
धारा की तरह बहूँगा।
क्योंकि , मैं हूँ बन्दा गाँव का , 
गाँव में ही रहूँगा।

चंदन कुमार अभी - दयानगर, बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos