गाँव में ही रहूँगा
कितना दूर भागेंगे वो मुझसे ,
उनका पीछा नहीं छोडूंगा।
चाहें कितनी भी शिकायत हो उनसे ,
पर उनकों नहीं कहूँगा
क्योंकि , मैं हूँ बन्दा गाँव का ,
गाँव में ही रहूँगा।
अब अच्छा नहीं लगता हूँ उनकों ,
ये तो मुझे भी पता है।
दिल ने उनको अपना समझा ,
ये दिल की ही ख़ता है।
लाख तकलीफ वो दे-दें मुझको,
मैं हर तकलीफ सहूँगा।
क्योंकि , मैं हूँ बन्दा गाँव का,
गाँव में ही रहूँगा।
भूल कर भी वो मुझे
भुला नहीं पाएँगे।
याद बनकर उनको हम,
हमेशा ही सताएँगे।
इक न इक दिन वो मेरी,
इस महफ़िल में आएँगे।
मैं उनके ज़हनों दिल में,
धारा की तरह बहूँगा।
क्योंकि , मैं हूँ बन्दा गाँव का ,
गाँव में ही रहूँगा।
चंदन कुमार अभी - दयानगर, बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)