मैं तो खोया रहा अपनी वीरान जीवन में - कविता - शेखर कुमार रंजन

मैं तो हमेशा खोया रहा,
अपनी वीरान जीवन में
पता नहीं आजकल लोग मुझे,
किताबों में क्यों? ढूंढ़ रहें हैं।

मैं तो हमेशा खोया रहा,
अपनी वीरान जीवन में
पर पता नहीं लोग मुझसे,
क्या-क्या आस लगाएँ बैठे हैं।

मैं तो हमेशा खोया रहा,
अपनी वीरान जीवन में
पर क्यों? लोगों को लगता हैं की,
मैं उसे आबाद कर सकता हूँ।

मैं तो हमेशा खोया रहा,
अपनी वीरान जीवन में
पर लोगों को क्यों? लगता कि,
बहुत आबाद हैं शेखर।

मैं तो हमेशा खोया रहा,
अपनी वीरान जीवन में
पर पता नहीं लोग मुझे,
किताबों में क्यों? ढूंढ़ रहे हैं।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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