प्रतिभा उस प्रज्ञा का नाम है जो नित्य नवीन रसानुकूल विचार उत्पन्न करती है।
प्रतिभा वह शक्ति है जो किसी व्यक्ति को काव्य की रचना, गायन, वादन, नृत्य, नाट्य, खेल युद्ध कौशल, चित्रकारी, कलाकारी आदि अनेक विधाओं में महारत को सिद्ध करती है, प्रमाणित करती है।
गीता में भगवद्विभूति गिनाते गिनाते भगवान कृष्ण ने कहा है अर्जुन अब हम कहां तक तुमसे भगवद्विभूति गिनाते रहें, समझ लो जिस मनुष्य में कोई बात असाधारण और लोकोत्तर बात हो उसे भगवत विभूति ही मानो, यह लोकोत्तर चमत्कार ही प्रतिभा है।
कृष्ण भगवान ने अपने विभूति में कहा है कि, वे जिनमें किसी तरह की प्रतिभा है जन्म तो उन्हीं का सफल है।
जो प्रतिभाशाली होते हैं हीरे की तरह अँधेरे मे भी चमकते हैं। असली प्रतिभा हमेशा चमकती रहती है, चाहे जितनी भी विपरीत परिस्थितियां क्यों न हो।
देर जरूर हो सकती है मगर अंधेर नहीं। यह जरूर है कि मनुष्य की प्रतिभा प्रतिकूल समय में निखरती है।
प्रतिभा को सफलता में ज्यादा ही महत्व दिया जाता है। कोई प्रतिभा जन्मजात होती हैं तो कोई हासिल भी की जा सकती हैं। प्रतिभा वह शक्ति है जो जन्म को सार्थक करती है व अपूर्व सौंदर्य की रचना करती है।
प्रतिभाशाली होना ईश्वर का वरदान तो है ही, ईश्वर प्रदत्त भी होता है।
जिस तरह अंधेरे में भी हीरा नहीं छिपता उस तरह प्रतिभा भी सर चढ़ कर बोलती है एक दिन जरूर सामने आती है।
प्रतिभा बुद्धि का वह गुण और मनुष्य की वह शक्ति है जो स्वाभाविक होती है और अभ्यास से अधिक से अधिक बढ़ाई जा सकती है।
प्रत्येक क्षेत्र की प्रतिभा का अलग-अलग तारतम्य हैं।
प्रतिभा का प्रसाद गुण के साथ बड़ा घनिष्ठ संबंध होता है। मनुष्य में प्रतिभा का होना पुनर्जन्म का पक्का सबूत भी माना जाता है। कहते हैं यह पिछले जन्मो से गुजरते हुए आता है।
जब शिक्षक एक पाठ 2 बच्चों एक साथ ही पढ़ाता है तो एक के समझ में आ जाता है और दूसरे की समझ में नहीं आता तो प्रतिभा के कारण ही होता है।
जिसकी समझ में आ जाता है उसके प्रतिभाशाली होने का ही सबूत है, और यह इसे पुनर्जन्म से जोड़कर देखा गया है।
धर्म की स्थापना, समाज का नेतृत्व यह महान प्रतिभा है जो हर किसी में नहीं होती यह प्रकृति प्रदत्त होती है।
ये सत्य है की प्रतिभा एक दिन सर चढ़कर बोलती है।
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)