एक अटूट बंधन - कविता - माधव झा

फिर ओ आया दिन सुहाना,
भाई बहनो का प्यार पुराना,
एक डोर  में  फिर  से बंधेंगे,
नई  रिश्तो में प्रेम की धागा।

सुनी न ही रहेगी कलाई,
रंग बिरंगी राखी हैं आई,
लाल'पीला नीला और काला,
दिखेंगें हाथ सतरंगी माला।

लेके हाथो में पूजा की थाल,
देगीं  बहना  आरती  उतार,
मिष्टान्नो  से करके शुरुआत
बंधेगी  ओ  राखी की गाँठ।

यही वर्षो से है रीति पुरानी,
निभा रही है ये दुनिया सारी,
बना रहे  ये बहनों का प्यार,
आया  रक्षा  बन्धन त्योहार।

सदा रहे भाई बहन का प्यार,
करती  है  बहना यही पुकार,
माधव भी नही करता इनकार,
बंधवा  आता  बंधन हर साल।

माधव झा - दमामी, बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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