तेरे हर बात का जवाब - ग़ज़ल - नौशीन परवीन

तेरे हर बात का जवाब मेरे सवालात में ही था
प्यार जताने का अंदाज तो मेरी हर बात में ही था

सिर्फ घर सजाने का तसव्वुर लिये मैं जीती रही ताउम्र
तू भले ही मुझसे दूर था मेरे ख्यालात में ही था

गर भूलना भी चाहूं तो किस तरह से भूल पाऊंगी
मेरी मुहब्बत के सबक में तो तू शुरुआत में ही था

तुम से दूर रहकर मुझको भी जीना रास नहीं आया
मोहब्बत का मज़ा तो सिर्फ़ एक मुलाक़ात में ही था

ख़ुदा के वास्ते एहसान-ऐ फरामोश ना कहो मुझको
तेरा एहसान तो नौशीन की जज़्बात में ही था


नौशीन परवीन - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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