दुनिया कुछ आज कल - कविता - मधुस्मिता सेनापति

जहां कुछ बोलना न हो
वहां हम सब कुछ बोल जाते हैं
जहां बोलने की जरूरत हो
वहां हम चुप ही रह जाते हैं........!!

कोई एक गलती कर दे तो
हम सौ उंगलियां उठा लेते हैं
जब कोई अच्छा काम कर लें 
एक ही संवर्धन में हम सब भूल जाते हैं.......!!

जिनके पास दो वक्त की रोटी नहीं होती है
वह दुःख, कष्ट से जीवन बिता लेते हैं
जब पास में होती है करोड़ों  रुपए
हम बचे हुए खाना को कूड़ेदान में फेंक लेते हैं........!!

बाहरी दुनिया के साथ
हम रिश्ते बनाने में जुट जाते हैं
जब कि घर में बूढ़े मां -बाप अकेले होते हैं
उनसे हम यूं ही मुंह मोड़ लेते हैं..........!!

उपहार हम उन्हीं को देते हैं
जिन से दुगना मिलने की उम्मीद रहती है
व्यापारी दस गुना कमाते हैं
हम ब्लैक मार्केट कर जाते हैं........!!

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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