मस्त महीना सामण - हरियाणवी गीत - समुन्द्र सिंह पंवार

पींग - पाटड़ी ठाकै गौरी झूलण चाली बाग मै
मस्त महीना सामण का वैं मस्त हुई रंग राग मै

करकै हार - सिंगार नार वैं बागां के म्हां आई
जामण के म्हां झूल घाल कै देही तोड़ बगाई
बारी - बारी झूली सारी कंवारी और के ब्याही
सासु जी का नाक तोड़ कै करली मन की चाही
जोबन बैरी ले अंगड़ाई, जणु विष करलावै नाग मै
मस्त महीना सामण का वैं मस्त हुई रंग राग मै

कोय साड़ी कोय सुंट पहररी कररी फैशन निराले
जोर - जोर तै झोटे देहरी सारे लजरते डाहले
झरनाटा रहया उठ बाग मै झुकरे बादल काले
रुत मस्तानी, चढ़ी जवानी पाड़ रही थी चाले
जिनके पास नहीं घरआले , वैं जलैं विरह की आग मै
मस्त महीना सामण का वैं मस्त हुई रंग राग मै

सामण के म्हां आवै रंगीला तीजां का त्योहार
शीली - शीली बाल चालै और ठंडी पडै फुहार
सामण के म्हां मस्तावैं सारी ये छोटी - बड्डी नार
कामदेव करै काल सभी नै या नहीं बसावै पार
इस दुनिया मै सच्चा प्यार, ना होता सबके भाग मै
मस्त महीना सामण का वैं मस्त हुई रंग राग मै

सामण के म्हां हरी - भरी या होज्या धरती सारी
भोरें हांडे सैल करते खिलज्या केशर क्यारी
कहाँ तक करुँ बड़ाई लोगो रुत सामण की न्यारी
सामण के म्हां कावड़ आवैं जो सबनै लागैं प्यारी
कहै समुन्द्र सिंह वो भोला भंडारी, बसज्या दिलो दिमाग मै
मस्त महीना सामण का वैं मस्त हुई रंग राग मै

समुन्द्र सिंह पंवार - रोहतक (हरियाणा)

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