परिणीता - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

सात जन्मों का मधुरिम प्यार,
परिणय  सूत्र   बंधे     संसार।
जीवन की अनुपम वेला  यह,
सजी   बेटी    सोलह  शृङ्गार।

सज हाथ सुभग   लगी मेंहदीं,
लाहों   की   चूड़ी  खनकदार।
नक्षत्रखचित    लँहगा   लाली,
स्वर्णजटित गात्र उरोजित भार।

मधुर मिलन हमदम जीवन का,
दो  अनज़ाने  आज    गलहार।
हाथ   थाम   चारु   नवदम्पती,
बिम्बाधर  मुख     नैन कज़रार।

बंधे     बन्धन   मृदु   प्रेमहृदय,
अग्नि  कुण्ड  सप्त     फेरेदार।
सुख दुख जीवन साथ चले  ये,
चारु   स्वप्नों    के     साझेदार। 

बेटी  परकीया   बहू    बनकर,
गृहिणी   क्कुलवधू  परपरिवार।
सजा माँग  सिन्दूर   सुहागिनी,
मंगलसूत्र    साजन    उपहार।।

अभिलाष मनसि उल्लास भरित,
नवसोच  हृदय   युगल  दिलदार।
आनंदित  अरुणाभ   युगल  नव,
चले    साथ      करने   गुलज़ार। 

यायावर  बन   साथ  युगल  पथ,
मदन  बाण   घायल  सजन यार।
ख्वावों की  मधुरिम सुहाग  निशि,
रतिराग अनल  मादक  सुखसार।

चंचल मन सरसिज सम चितवन,
मुस्कान कुसुम  खिलते  कचनार।
तन मन सब  अर्पण  कर साजन,
रसपान   नैन   प्रियम  अभिसार।।

संकोच  सहज,  पति सुखभावन,
मधुशाल  बनी   सजनी  प्रियतम।
निशिचन्द्र प्रियम  रस   चन्द्रप्रभा,
रजराज   भ्रँवर   गुलज़ार  चमन।

मुग्धा   धीरा    सजनी     रभ्भा,
कामातुर  सजनी   कर  मनहार।
परणीत  नयी   सजनी  दिलवर,
निश्छल संकोचित प्रिय गलहार।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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