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निर्धनता अभिशाप नहीं होती - कहानी - शेखर कुमार रंजन
गरीब के बच्चे खेल के आते है, तो पहले अपना चुल्हा देखता है, पर चुल्हे को देख ऐसे ही सो जाते है। वह एक बार भी नहीं कहता कि माँ खाना…
कृपा सदा माँ भारती - दोहा - डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज"
स्नेह सहज शीतल विमल, पावन नित सम्मान। सारस्वत आशीष हो , दुर्लभ नित वरदान।। कृपा सदा माँ भारती , अरुणिम खिले निकुंज।…
मुस्कान मरुस्थल में जल-बूंद सी - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
मुस्कान मरुस्थल में जल की बूंद सी, लाभप्रद होकर, जिंदगी दे सकती है। मुस्कराहट बिखेर, महामारी डराते रहिए, घर में नित नव स्रजन करते…
परिवर्तन - लघुकथा - भरत कोराणा
पायल देर सवेर उठती थी। आभासी दुनिया में खोने के कारण उसको पता ही नही था की कब सोना और कब उठना है। अमीर परिवार से होने के कारण उसके …
स्त्री की चाहत - कविता - अशोक योगी "शास्त्री"
क्या चाहती है स्त्री धन और दौलत शान औे शौकत ब्रांडेड कपड़े स्वर्ण छैलकड़े गाड़ी , बंगला स्टेटस बड़ा सा बैंक बैलेंस अगर यही …
किसी की भावनाओं से ना खेलें फ़िल्म निर्माता - लेख - समुन्द्र सिंह पंवार
मित्रों , आज बात करेंगे फ़िल्मी जगत की। हमरे देश के फ़िल्मी जगत को बॉलीवुड कहा जाता है। फ़िल्मी जगत ने देश को अनेको कलाकार दिए है। …
रात दिवस नित रटत हूँ - कविता - सुषमा दिक्षित शुक्ला
सुनु आया मधुमास सखि, लगा हृदय बिच बाण । देहीं तो सखि है यहाँ , प्रियतम ढिंग है प्राण । किहिके हित संवरूं सखी, केहि हित …
उषाकिरण मुस्कान - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मनभावन किंशुक कुसुम , गन्धहीन जग त्याग। पुष्पित पाटल साधु सम, सुरभित यश अनुराग।।१।। हाँ वह अपने पास है , हम हैं उसके पास।…
आत्मविश्वास - कविता - शेखर कुमार रंजन
क्या कुछ नही हो सकता है जब आत्मविश्वास अटल हो चट्टान भी नही रोक सकता जब धाराओं में बल हो। हल्की बात करोगे तो कोई तुम्हें क्यो…
कैरियर सलाह (आईटीआई) - लेख - रुपेश कुमार
आज मैं आईटीआई के बारे में बात करना चाहता हूँ। यह एक वोकेशनल कोर्स है जिसे आज के समय में सबसे अधिक जरूरत महसूस की जा रही है क्योंकि …
सच मगर अब यहाँ नहीं चलता - ग़ज़ल - दिलशेर दिल
तुमने एक बार भी नहीं सोचा। बिन तुम्हारे हमारा क्या होगा। तुम तो उलझे हो ज़िंदगी में मगर, ज़िंदगी है महज़ इक धोका। झूट बोलूँ तो दि…
गाऊँ राम भजन - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रामावतार गीत गाऊँ मैं, जीवन पापों से उद्धार करुँ। श्रीराम नाम अभिराम मनोहर, अन्…
बस यही जीत है मेरी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
तुम्हारे न होने के बाद भी, तुम्हारे होने का अहसास। शायद यही है वह अंतर्चेतना, जिसने मेरे भौतिक आकार को, अब तक धरती से बांधे रखा …
आत्ममंथन - कविता - शेखर कुमार रंजन
ए इंसान कभी तुम्हें भविष्य की चिंता सताती है तो कभी तुम्हें अतीत की गलतियाँ रुलाती है भूल जाओ क्या हुआ था अतीत में ,छोड़ो क्या होगा…
नयन - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
उन मचलती आंखों का, काजल था कभी मैं। वे आज नज़र उठा कर भी, नहीं देखते हमें ।। फूलों को लगा दो, कहते थे मेरे इन गेसुओं में। कहते थ…
दिनों का फेर - कविता - भरत कोराणा
मै गरीब था जनाब कोसों तक राह पर तलवे फोड़ते गाँव आया यह दिनों का फेर था। हम बैठें है चिड़ियाघर के उदास हाथी की तरह जिसे बाँ…
उलझे हो - ग़ज़ल - रोहित गुस्ताख़
तुम अभी तक हम ही में उलझे हो, क्यूँ तुम गलतफहमी में उलझे हो, हम मौत से मिलके वापस आ गए, तुम अभी तक ज़िन्दगी में उलझे हो, तुम रह…
मै नये दौर की बेटी हुं - कविता - चीनू गिरि
मै नये दौर की बेटी हुं हर वार का जवाब देना जानती हुं , असहाय, कमजोर ,अबाला नही हुं ! अपनी शर्ते पर अपना जीवन जीती हुं, मन मानी म…
गाँव की ओर चल पड़े हैं भारतीय उद्योग - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
भारत गाँवो मे बसता है ये बात इस बात से भी सन्दर्भित है कि 70 प्रतिशत आबादी भारत के गाँवो मे अब भी है ।कोरोना काल से पहले की स्थिति …
आत्मसम्मान - कविता - शेखर कुमार रंजन
कुछ लोग जिंदगी भर एक ही काम करते रहते हैं किंतु मुझे एक ही जिंदगी में बहुत कुछ करना है। सुना था की जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी…
निर्दय तुम छलिया प्रिये - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
अक्रूर जी ने कंस का , मथुरा से संवाद। आमंत्रण श्रीकृष्ण को , देकर जन्म विवाद।।१।। सुनी यशोदा व्याकुलित,नंद गोप मन क्ल…
आदमी स्वयं से लड़ रहा है - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
महाशक्ति की लालसा ने, कर दिया है बेहाल। समस्त संसार को, मुश्किल में दिया है डाल। साम्राज्य विस्तार ने दुनिया, गर्त में दी है डा…
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