मुस्कान मरुस्थल में जल-बूंद सी - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

मुस्कान मरुस्थल में जल की बूंद सी,
लाभप्रद होकर, जिंदगी दे सकती है।
मुस्कराहट बिखेर, महामारी डराते रहिए,
घर में नित नव स्रजन करते,कराते रहिए ।
हंसते रहिए, और हंसते-हंसाते रहिए ।
अपनों की सुनिए, सुनकर विचार कीजिए,
समस्याएं हैं,उनका समाधान तो दीजिए।
कम निकलिए, ना उन्हें निकलने दीजिए,
अनावश्यक,घर से बाहर मत  निकलिए,
रोज बाजार न जाइए, अपने लिए न सही
परिवार के लिए,जान की कीमत समझिए।
'रोज़े' रमजान  हैं , इबादत करने दीजिए।
ईमान के साथ ही उन्हें रोजे़ रखने दीजिए।
पवित्रता ना भंग, किसी को करने दीजिए ।
आग की लपटें आज, मुंह बाए खड़ी हैं,
जलती हुई राहों को अब शीतल कीजिए।
वक्त की कद्र तो हमको भी करनी चाहिए।
सियासत न अब किसी को करनी चाहिए। 
हिंसा न करो, नहीं किसी को करने दीजिए,
अहिंसक बनो, इसे बरकरार रहने दीजिए ,
अवामी-तस्वीर को  न शर्मशार कीजिए,
शरीयत का सभी मिलकर पालन कीजिए।
हक़ देकर, कर्तव्य कर दुआएं ले लीजिए,
नेकी अवश्य कीजिए, अल्लाह से अपने
गुनाहों को, आप लोग माफ़ करा लीजिए। 
सच कड़वा होता है, तो रियायत कीजिए,
रजामंदी से जनता की, अकीदत कीजिए,
दीजिए पवित्र-रिश्ते, और पवित्र कीजिए।
दीजिए, मुस्कान मरुस्थल में।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर , एटा (उ०प्र०)

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