निर्धनता अभिशाप नहीं होती - कहानी - शेखर कुमार रंजन

गरीब के बच्चे खेल के आते है, तो पहले अपना चुल्हा देखता है, पर चुल्हे को देख ऐसे ही सो जाते है।
वह एक बार भी नहीं कहता कि माँ खाना चाहिए, क्योकि वह जानता है कि कहने से कोई फायदा नहीं यदि चावल या आटा होती घर में तो माँ खाना बना दी होती साथ ही यह प्रश्न पूछकर माँ  को शर्मिन्दा नहीं करना चाहता कि माँ भूख लगी है खाना है क्या? हां ये बात भी सही है कि भूख के कारण बिछावन पर भले उसे नींद नहीं आती हो किन्तु वह कर भी क्या सकता था किसी प्रकार जबरदस्ती सोने का भी प्रयास तो विफल हो जा रहा था। गरीब बच्चे को पढाई से दूर - दूर तक कोई वास्ता नहीं होता , इन्हे बस पेट भर खाना मिल जाएं वह दिन इसके लिए त्योहार से कम नहीं होता। हां इस बात से मुकरा भी नहीं जा सकता की गरीब के बच्चों को साल में एक पैंट और कमीज भी खरीदा जाता है किसी बडे त्योहार के शुभ अवसर पर किन्तु ये भी यदि ना हो , तो मानवता शर्मसार नहीं हो जाएगी।

मै यह कहानी बिहार के एक गरीब बच्चे का बता रहा हूँ। यह कहानी सौ फीसदी सत्य है उम्मीद है, कि इस बच्चे की तकलीफ आप अपने दिल में महसूस करोगे।

इस बच्चे के घर पर बडे - बडे त्योहारों में खाना में दाल भात के साथ यदि सब्जी भी मिल जाता तो भी खुश हो जाता और खुशी से उछलने कूदने लगता है और उस दिन दो चार निवाला ज्यादा ही खा लेता क्योंकि कुछ दिन ऐसे भी होते थे इनके जीवन में जिस दिन सिर्फ पानी पीकर ही सो जाना पड़ता था। उस दिन उसे पता चलता कि सच में नींद जबरदस्ती की नहीं आती। वह बाकियों गरीब बच्चो की भांति सारा - सारा दिन खेलने में गुजार देता था।

एक दिन ऐसा हुआ कि वह पतंग लूटने के लिए पतंग के पीछे दौड़ने लगा और दौड़ता हुए एक विद्यालय में पहुंच गया जहां पर वो बहुत सारे बच्चो को एक साथ पढ़ते देखता है शिक्षक उन्हें प्यार से पढ़ा रहे होते हैं यह देखकर उस बच्चे के मन में भी पढ़ने की इच्छा शक्ति जागृत होती है वह भी मन बना लेता है कि मैं भी अब पढूँगा किंतु उस बच्चे को पढ़ायेगा कौन? पढ़ने में तो पैसा लगता है पुस्तके और कॉपियां खरीदनी पड़ती है कपड़े भी थोड़ी ढंग की होनी चाहिए किंतु इसके पास तो एक ही पैंट है और एक ही कमीज भी । यदि कभी-कभी नदी में नहाता भी तो बिना कपड़ों के ही और वह नहाने के बाद वही पहन लेता। शायद यही कारण था कि उसे बरसात का मौसम बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। क्योंकि बारिश में उसके घर का छप्पर चूता था जिसके कारण उसका रात भर का नींद हराम हो जाता था। कभी-कभी तो पूरी रात बैठकर सुबह कर देता  कभी-कभी दिन में यदि बरसात हुई हो और उसके कपड़े भीग गए हो, तो वह अपने पिता की धोती व ढीला-ढाला कमीज पहनकर काम चलाता था। वह ऐसा कपड़ा पहनकर पढ़ने जा सकता था क्या? ऐसे गरीब बच्चे के साथ कोई अन्य स्कूल के बच्चे बैठकर पढ़ना स्वीकार करता क्या? अन्य बच्चे इसके साथ बिना कोई भेद-भाव के बैठना पसंद करता क्या? यह एक गरीब का बच्चा है इसके पिता जी एक मजदूर है एक ऐसा मजदूर जिसे वर्ष के लगभग छह महीने काम ही नहीं मिलता है। उसी स्कूल में इसके मालिक के बच्चे लोग भी पढ़ते हैं क्या कोई बच्चा अपने पिता के नौकर के बेटे को अपना दोस्त बनाता। क्या कोई बच्चा ऐसे बच्चों के साथ बैठकर पढ़ना पसंद करता जिसके हाफ पैंट मे चैन की जगह बटन हो, बेल्ट की जगह डारा लगा हो साथ ही पीठ पर चिप्पी लगी हो और थोड़ी कांख में भी फटी हो। आप ही बताओ ऐसे बच्चों को कोई दोस्त बनाता क्या? दिमाग तो उस बच्चे का शुरू से ही बहुत तेज था और तेज हो भी क्यों ना वह तो गुल्ली डंडे खेल कर ही गिनती और पहाड़ा सीख लिया था। मानो ताश खेलने में तो महारत हासिल किया हो सारा दिन खेलता ही रहता कभी कबड्डी कभी क्रिकेट कभी कित-कित कभी आसपास (छुपा-छुपाई ) कभी जामुन बिछकर खाता तो कभी अमरुद बिछकर खाता। यदि अगल-बगल में कोई न हो, तो पेड़ो पर भी चढ़ जाता हालांकि पेड़ उसका खुद का नहीं होता किंतु अपना भूखा पेट भरने के लिए यह सब करते रहता। कभी भूख लगने पर तूत तोड़ता तो कभी खेतों में जाकर हरी भिंडी खाता कभी जंगलों में जाकर घुर्मनंटी खाता कभी-कभी तो हजामती किया गया ब्लेड लेकर आम के टिकोला को छिलकर नमक के साथ खाता उसे इंफेक्शन से मरने का डर नहीं होता जितना कि पेट को भरना जरूरी समझता था।

कभी-कभी ऐसा भी होता कि जब उसकी माँ चावल को तसला में बनाने के लिए लगा देती तब वह डगरी लेकर गुरकाना शुरू कर देता। फिर माँ कहती अरे मामा गरीब हो जाएगा छोड़ देता अक्सर वह बच्चा खाने के पीछे पड़ा रहता क्योंकि खाली पेट उसके दिमाग की बत्ती नहीं जलती थी। वह दिमाग का काफी तेज था यदि दुकान से कुछ सामान लाना हो, तो एक बार में पूरा सामान कभी नही लाता। दूसरी बार माँ की डांट खाने के बाद ही जाता था माँ परेशान होकर कहती पता नहीं क्या होगा इस लड़के का और माँ चिंता करने लगती इसके यादाश्त को क्या हो गया है इसे कुछ भी याद नही रहता किंतु माजरा यहां कुछ और होता था। वह लड़का जितनी बार किराना दुकान जाता था उतनी बार अपने पॉकेट को चुरा और चीनी से पैक कर लेता था मतलब कि वह दुकान में से चुरा-चीनी उठाकर रख लेता था और अपने घर में एक गुप्त स्थान पर रखकर खाता था। खाना बनना अभी शुरू भी नहीं हुआ होता था कि ग्लास लेकर मार लेने के लिए तैयार हो जाता था। यदि उस वक्त उसे ज्यादा भूख लगी हो, तो मार मे नमक रखकर मिनटों में चट कर देता था। कभी-कभी भात के साथ मार और नमक मिलाकर खाता और कभी-कभी तो उठने के बाद सुबह सुबह बासी रोटी में सरसों का तेल और नमक मिलाकर खाता तथा यदि शाम में कभी भूख लग जाता तो पानी में चीनी को मिलाकर उसमें रोटी को तोड़कर फिर मिलाकर खाता। और वह हर स्थिति में खुद को खुश रखता। इसके घर कभी कुछ स्पेशल बना तो खुशी का ठिकाना ना होता। इसके लिए स्पेशल क्या था पता है? आलू को रोटी में मोर कर खाना। इसकी माँ अक्सर कहती बेटा आ जा आज स्पेशल बनाई हूँ आकर खा लो आओ तुम्हें अपनी हाथो से खिलाती हूँ और क्या रोटी पर आलू को रखकर उसे उंगलिया से फोड़ कर सीधा लाइन में रोटी पर रखकर वह रोटी को बेलन के आकार बनाकर उसे खिलाया करती थी। हां कभी-कभी आलू की जगह चीनी भी हुआ करता था ऐसी बात नहीं है कि हमेशा ऐसे ही खाता था। कभी-कभी ऐसा भी होता कि उसे शुद्ध शहद के साथ रोटी खाने का अवसर मिलता हां और मिले भी क्यों नहीं प्राकृतिक किसी के साथ भेद-भाव थोड़ी ना करती है शायद यही कारण था कि उसके नीम के पेड़ पर मधुमक्खियां अपना छाता लगा देती थी जिससे कि उसे शुद्ध शहद की प्राप्ति आसानी से हो जाती थी और वह खाने का अवसर भी प्राप्त  करता था। सबसे ज्यादा रोटी वह  तीसी व भुजा हुआ हरी मिर्च के साथ खा लेता था यह उसे बेहद पसंद था हालांकि यदि खाने में केवल चावल हो तो प्याज की चटनी के साथ भी बड़ी चाव से खा लेता और आम का अचार मिल जाए तो फिर उसका जवाब नहीं दो चार निवाला ज्यादा ही खा लेता। यदि प्याज भी खत्म हो गया होता और सिर्फ चावल ही होता तो उसे सरसों के तेल और नमक के साथ भी भुज कर खा लेता। ऐसा नहीं कि वह मांस कभी नहीं खाया हो मांस भी खाता था भले महीने दो महीने में एक बार ही क्यों न खाए। किंतु मछली तो बाढ़ आने पर आटा लगाकर बंसी से पकड़ ही लेता था। क्योंकि मछली को थोड़ी पता होता था कि आटा  इसका नहीं है उसे क्या पता कि दूसरों के आटा से यह मुझे पकड़ता है और फिर क्या खाने लायक हो जाती थी। किंतु ऐसा खाना हमेशा मिले ऐसा इसका नसीब कहाँ वह तो बाढ़ की वजह से मिल जाती थी।

इसे गर्मी ज्यादा पसंद था क्योंकि जहां मन वहां सो जाना किसी प्रकार कि कोई दिक्कत नहीं किंतु यदि सर्दी का मौसम हो , तो  सोचता की कब सुबह हो जो जाकर खेलू और अपने शरीर में गर्मी उत्पन्न करू।क्योंकि सर्दियों में सारी रात एक ही कंबल से गुजारा करना पड़ता था ठिठुर ठिठुर कर सुबह करता था। जब सुबह में नींद खुली तो देखता की कंबल तो ओढ़ा हुआ हूँ ही साथ में जो चटाई बिछाया था उसे भी आधा मोड़ कर ओढ़ा हुआ हूँ शायद यही कारण था कि इसे सर्दी अच्छी नहीं लगती थी। जैसा कि आपको पता है कि बारिश में इसे काफी दिक्कत  होती थी क्योंकि रात-रात भर जागकर सुबह करना पड़ता था। यह था तो गरीब किंतु शौक अमीरों के बच्चे जैसा पूरा करना चाहता था जैसा कि मैं बता दूं यह जब भी अमीरों के बच्चे को जन्मदिन मनाते देखता उसे भी अपनी जन्मदिन मनाने का मन करता किंतु पैसा के अभाव में ये मोमबत्ती और गुब्बारा कहां से लाए किंतु वह हार मानने वाला बच्चा नहीं था वह तो छोटी-छोटी खुशियों को बटोरता था तथा बड़ी से बड़ी समस्याओं का भी हंसकर समाधान करता था। जो कुछ भी वह एक बार सोच लेता पूरा करके ही मानता वह अपना जन्मदिन कुछ इस कदर मनाता था भात को टिफिन में रखकर ऊपर से हाथ को बार-बार मारता और फिर उसे थाली में पलट देता जिससे की भात का केक तैयार हो जाता मोमबत्ती के स्थान पर हरी मिर्च को भात के ऊपर गांथ देता और फिर गुब्बारे के स्थान पर अगरबत्ती की पन्नियों को मुंह से हवा भर कर जमा कर देता और एक ओर थाली में नमक प्याज अचार आदि रख लेता और फिर अपनी उंगलियों से भात के केक को काट लेता साथ ही बाएं हाथों से अगरबत्ती के पन्नियों को फोड़ता और हैप्पी बर्थडे टू यू खुद का नाम बोलकर खाना प्रारंभ कर देता साथ ही बहुत ज्यादा खुश हो जाता और अपने दोस्तों को भी कहता कि मैंने अपना जन्मदिन मनाया है।

चाहत तो बड़ी-बड़ी थी सपने तो बड़ा-बड़ा देखता था वह बच्चा किंतु गरीबी का मारा था क्या करता। पढ़ने का मन तो बहुत करने लगा था उसका उसकी इच्छाशक्ति काफी तीव्र हो गई थी पढ़ाई को लेकर किंतु वह करता क्या? एक ओर किताब देखता तो दूसरी ओर पेट की भूख जान मारने लगती। वह थोड़ा मजाकिया भी था उसे मानसिक खेल ज्यादा पसंद आती थी यही कारण है कि वह ताश की पत्तियों में ज्यादा दिलचस्पी लेता इसके अलावा उसे शतरंज खेलना भी बहुत पसंद था दूसरे बच्चों को खेलता देख सीख लिया था। शायद ही कोई खेल होगा जो यह नहीं खेलता था दियासलाई की पत्ती (खाप) जमा करता तो कभी थम्सअप के मुन्ने को वृत्ताकार आकार देकर घिरनी बनाकर खेलता तो कभी टूटे हुए कर्क को अपने दोनों चप्पलों को बांटकर बैडमिंटन खेलता एक चप्पल सामने वाले खिलाड़ी को दे देता तथा दूसरे चप्पल को खुद रखता। कर्क कोई दूसरा खेल कर तोड़ देता था और फेंक देता था वही चुनकर लेकर खेला करता था। पतंग उड़ाना उसे अच्छा लगता था किंतु खरीदने के लिए पैसे नहीं होता तो  किसी से एक अखबार पुरानी वाली लेकर साथ ही किसी के यहां से झारू की लकड़ी तोड़कर उसे पतंग का कंफा बनाता था गोंद ना होने पर चावल से ही चिपकाया करता था और फिर इस प्रकार किसी तरह से पतंग उड़ाता था। जिसके कारण उसे झाड़ू वाले का डांट भी सुनना  परता था, जिसका झाड़ू वह तोड़कर लाया था। यह अपना समय दालचीनी (जलेबी ) के पेड़ के नीचे भी देता था उसके नीचे से दालचीनी बीछकर खाया करता था। कभी किसी से ईख मांग कर खाने लगता भूख लगने पर किसी के खेत से आलू चुराकर उसे पकाकर खाता तो किसी के खेत का खेसारी की हरी पत्ता खाना शुरु कर देता। कभी किसी की खेतों की मटर तोड़कर खाने लगता। मौका मिलते ही किसी के खेत की अलुआ को भी खाने में देरी नहीं करता और मूली तो बस थोड़ा ही मोटा होता और फिर जब तक खत्म नहीं होता तब तक छोड़ता नहीं था। यदि उससे पूछते की आंख बंद करके सोचकर  बताओ कि तुम्हें क्या जरूरी लगता खाना या पढ़ाई तो वह बिना देर किए खाना बोल देता था। किंतु यदि पेट भरा हो, तो पूछा जाए कि क्या ज्यादा जरूरी है तब पढ़ाई बोलता था। प्रश्न एक ही था किंतु अलग-अलग स्थितियों में उसका उत्तर अलग-अलग होता उस दिन एक बात समझ में आ गई कि भूख शिक्षा पर भारी पड़ता है किसी गरीब से खासकर वैसे गरीब जो भूखा है उससे पूछिए कि आपको खाना चाहिए या शिक्षा तो खाना ही चयन करेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। एक बात समझ में आ गई कि वह बच्चा पढ़ना चाहता था किंतु उसके सामने बहुत सारी आर्थिक समस्याएं मुंह बाए खड़ी थी।

यह बच्चा अब ताश पैसों पर खेलना शुरू कर दिया पैसों की व्यवस्था शराब की शीशी को बीछ कर बेच कर किया था और उसी पैसों को तास अथवा जुआ में लगाकर खेलना प्रारंभ किया और अच्छा पैसा जीत भी लेता है। अब ताश से पैसा जीतना और ताश खेलना लगभग उसकी आदत हो जाती है किंतु यह सिर्फ इसीलिए ताश खेलता है कि पैसा हो जाए तो पढ़ सकूँ किंतु हार जीत के इस खेल में वह अक्सर जीतता था। एक ओर उसे यह भी पता था कि जुआ खेलना बुरी बात है किंतु फिर भी खेलता कुछ पैसा जमा करने के बाद अब वह ताश खेलना छोड़ देता है और अब वह पढ़ाई की ओर अपना कदम बढ़ाता है। उस बच्चे का दिमाग बचपन से ही ठिक-ठाक रहता है अब वह पढ़ाई में भी मन लगाने लगता है और तेज हो जाता है। कुछ बच्चे इसकी अवहेलना करता है मजाक उड़ाता है तथा इसके साथ भेदभाव भी करता है किंतु इसके विपरीत कुछ बच्चे इसे अपना दोस्त भी बनाता है इसका एक कारण यह होता है कि वह पढ़ने में तेज रहता है किंतु जब यह अपने दूसरे दोस्तों को बढ़िया-बढ़िया कॉपी कलम बैग इंस्ट्रूमेंट बॉक्स आदि को देखता है तो यह भी सोचता है कि काश मेरे पास भी यह सब होता किंतु बच्चा तो बच्चा होता है थोड़ा बहुत तो इस प्रकार का सोच हो ही जाता है भला आए भी क्यों नहीं खुद तो वह कचरे से खत्म कॉपियों को इकट्ठा करता  और जिस-जिस पेज में नहीं लिखा होता उस पेज को जमा करके उसे सील देता और फिर क्या? नई कॉपियों की भांति उसका इस्तेमाल करता कलम कभी खरीदी हो यह उसे याद ही नहीं होगी। वह तो रिफिल खरीद कर लिखा करता था खत्म होने पर रसोई (इंक ) भरवाया करता था। यदि किसी का रिफिल खत्म हो जाता और वह फेंक देता तो उसे भी यह चुनकर जमा करके रखता। यदि इसके रिफिल का बॉल फूट जाता तो उसमें से बॉल निकालकर अपनी  रिफिल में लगा लेता जिसके कारण रिफिल फिर से चलने लगता। किंतु कभी भी उसे पैसा होता तो पन्ना गिन कर जनता कॉफी ही खरीदता था । इसका एक कारण यह था कि सबसे सस्ता मात्र ₹3 में और 38 से 40 पन्ने की कॉपी मिल जाती थी। बैग लेकर जब इसके दोस्त लोग पढ़ने आते तो यह भी अपना उपाय लगा लेता है यह बोरा (प्लास्टिक) में कॉपी किताब लेकर जाता और विद्यालय में पहुंचने के बाद कॉपी किताब निकाल लेता और बोरा बिछा कर उस पर बैठकर ही पढ़ता। उसका अपना चप्पल खो ना जाए इसलिए पीछे बोरा के नीचे रख कर बैठता था। वैसे इस बच्चे में यह आदत थी कि वह प्रश्न और उत्तर को मौखिक रूप से याद कर लेना पसंद करता था क्योंकि उसे कॉपी में लिखना ना पड़े वह आसान प्रश्नों को याद कर लेता था और याद करने के बाद उसे कॉपी पर नहीं लिखता था इसका कारण बस एक ही था कि वह अगर लिखेगा तो उसका कॉपी खत्म हो जाएगी। बहुत जटिल प्रश्नों को ही कॉपी पर लिखता था स्कूल से जब टाक्स मिलता राइटिंग लिखकर लाने के लिए तो वह राइटिंग कभी लिखकर नहीं ले जाता इसके कारण उसे मार भी लगती थी राइटिंग इसलिए कॉपी में नहीं लिखता था कि वह यह सोचता था कि कॉफी जल्द जल्द खत्म होगा तो फिर कहां से खरीदेंगे साथ ही एक बात बता दूं कि वह राइटिंग रोज लिखता था एक पेपर पर किंतु वह शिक्षक को नहीं दिखाता नहीं तो इसके लिए भी उसको मार पड़ती। साथ ही वह बच्चा नहीं चाहता था कि उसके इस स्थिति से कोई अवगत हो वह भले ही रफ पेपर पर लिखता था किंतु ज्यादा लिखने के कारण उसका राइटिंग काफी सुंदर हो गई थी। रफ से बचने के लिए वह बहुत सारी गणना दिमाग में ही कर लेता था जिसके कारण उसका दिमाग बड़े-बड़े गणना को बिना रफ किए ही हल कर लेता था। वह अपना अतीत भूल कर अपना एक अलग पथ तैयार करने लगा था। उसके बाद उसके जीवन में एक से बढ़कर एक समस्याएं आती गई किंतु वह हर समस्याओं का निदान बड़ी होशियारी और धैर्य के साथ करता गया बड़ी ईमानदारी के साथ वह विपरीत परिस्थितियों का भी डटकर मुकाबला करता गया और आज वह कहीं ना कहीं अच्छा जीवन व्यतीत कर रहा है वर्तमान में पढ़ाई में मास्टर डिग्री हासिल कर चुका है और प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहा है। गरीबी भी पहले की भांति अब नहीं रही अब अपने पिता के हाथ मे हाथ भी बंटाता है। कुछ समस्याएं आज भी उसे चिडाती है किंतु आज वह हर समस्याओं का एक बढ़िया समाधान ढूंढ लेता है उम्मीद है कि वह अपने जीवन में कुछ ऐसे उपलब्धि हासिल कर ले कि लोग उसके राहों कदम चले।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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