नयन - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

उन मचलती आंखों का, काजल था कभी मैं।
वे आज नज़र उठा कर भी, नहीं देखते हमें ।।

फूलों को लगा दो, कहते थे मेरे इन गेसुओं में।
कहते थे कभी मुझको छुपा लो अपने सीने में।।

ना तोडो़ ये रिश्ते , जिनके लिए जीते थे कभी।
साथ हम दोनों,एक ही रेस्तरां में पीते थे कभी।।

दे दो पनाह मुझे आज, तुम अपने आगोश में।
'विकल' हूं काफी खो दूं सभी,मैं ना रहूं होश में।।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर , एटा (उ०प्र०)

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