गाँव की ओर चल पड़े हैं भारतीय उद्योग - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

भारत गाँवो मे बसता है ये बात इस बात से भी सन्दर्भित है कि 70 प्रतिशत आबादी भारत के गाँवो मे अब भी है ।कोरोना काल से पहले की स्थिति पर नजर डालें तो रोजगार की अनु उपलब्धता के कारण ही गाँवो की श्रमशक्ति शहरों की ओर पलायन करती रही है ।

कोरोना के चलते कामगार अधिक दिनों तक गांव मे रहेंगे तो मजबूरी में उद्योगों को गांव की ओर आना ही होगा ।

विभिन्न उद्योग ग्रामीण क्षेत्रो की ही देन है, जैसे ईंट भटटा, बीड़ी, माचिस, लकड़ी तांबा पीतल के खिलौने, बर्तन एवं प्रतिमाये गांव मे ही निर्मित होती रही हैं । समय के साथ वह शहर की ओर बढ़े और कारखानों मे ग्रामीण उद्योग तब्दील हो गये ।
परन्तु अब समय को देखते हुए गांव मे अर्थव्यवस्था की परिकल्पना बहुत अच्छी सोच साबित हो सकती है, लेकिन गाँवो मे सुख सुविधाओं को उपलब्ध कराना सबसे बड़ी चुनौती है ।

औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय कुटीर उद्योकिगों में तेजी से गिरावट आई थी क्योंकि अंग्रेजी सरकार ने बिल्कुल ही भारतीय उद्योगों की कमर तोड़ दी थी जिसकी वजह से परंपरागत कारीगरों ने अन्य व्यवसाय अपना लिया था । किंतु स्वदेशी आंदोलन के प्रभाव से पुनः कुटीर उद्योगों को बल मिला और वर्तमान में कोरोना काल में तो  कुटीर  उद्योग आधुनिक तकनीकी की समानांतर भूमिका निभाने जा रहे हैं । अब इन में कुशलता एवं परिश्रम के अतिरिक्त छोटे पैमानों पर मशीनों का भी उपयोग किया जाने लगा है । भारत में कुटीर उद्योगों में गुजरात में दूध पर आधारित उद्योग व हैंडलूम राजस्थान में पत्थर काटना, कालीन बनाना और हस्तशिल्प उद्योग शामिल है । इसी प्रकार हैंडलूम, मलमल, रेशमी वस्त्र उद्योग भी कुटीर उद्योग में आते हैं ।

ग्रामीण पृष्ठभूमि के युवा अब आजीविका का रास्ता अपने गांव की ओर तलाश रहे हैं क्योंकि युवाओं में हाल के दिनों में खेती के प्रति आकर्षण बढ़ा है, लेकिन ऐसे युवाओं की संख्या अभी भी बहुत ज्यादा नहीं है ।

उत्तर प्रदेश , राजस्थान, हरियाणा जैसे राज्य में कई किसानों ने सफलता के झंडे गाड़े हैं । ये युवा उनसे प्रेरित हुए हैं ।

प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों की स्थिति पिछले कुछ वर्षों से खराब हुई है कुछ पदों को छोड़ा जाए तो मध्यम और नीचे स्तर पर वेतन बहुत ही कम है । जाहिर है उतने वेतन से महानगरों में रह पाना मुश्किल है । ऐसे में जिनके पास गांव में खेती बारी है वह ऐसे सफल किसानों से प्रेरित होकर गांव की तरफ जाना चाहते हैं। जिनमें थोड़ा धैर्य होगा और कुछ पूंजी भी होगी वह निश्चित तौर पर सफल होंगे ।

कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि जिन्होंने कृषि क्षेत्रों में सफलता हासिल की है वह खाद्यान्न की वजह से नहीं बल्कि फल, सब्जी, फूल व औषधीय पौधों के उत्पादन की ओर झुके हैं ।इस क्षेत्र में अभी भी बहुत संभावनाएं हैं । भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की संस्था  एपीडा की ओर से क्षेत्रीय किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है । कोरोना काल मे ऐसी ग्रामोद्योग की ओर उन्मुखता एक सुनहरा क्रांतिकारी प्रयास होगा । पढ़े लिखे ग्रामीण युवा ऊर्जावान तू है ही , उनको कृषि उद्योग के साथ साथ  रोजगार भी प्राप्त होंगे ।

अगर उद्योग गांव मे पनप जाएंगे तो पलायन की गम्भीर समस्या का समाधान होगा, पलायन पर अंकुश बेशक  लगेगा ।
हमारा देश तब समृद्ध एवं सुविकसित होता जायेगा । इसी लिए कोरोना काल मे सरकार गांव में उद्योगों को बढ़ावा दे रही है । 


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)

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