आमंत्रण श्रीकृष्ण को , देकर जन्म विवाद।।१।।
सुनी यशोदा व्याकुलित,नंद गोप मन क्लान्त।
कृष्ण बिना जीवन वृथा,मानस हुआ अशान्त।।२।।
कान्हा है सुत देवकी ,मुर्च्छित यशुमति अम्ब।
दूध पिलायी कोख मैं , लाल मोहि अवलम्ब।।३।।
नंद गाँव में खलबली, कृष्ण गमन का शोर।
व्याकुल गोपी गोपियाँ, प्रेम भक्ति चितचोर।।४।।
मुरलीधर मिलने चले , राधा रानी मीत।
अश्रु नैन जलधार बन , बही राधिका प्रीत।।५।।
निर्मोही छलिया सजन , दी राधे उपराग।
मनमोहन पुलकित हृदय, राधा मन अनुराग।।६।।
प्रेम दिवानी राधिका , आलंगित घनश्याम।
धन्य राधिका प्रेम है , मुरलीधर सुखधाम।।७।।
प्रिय राधे मन मञ्जरी , आज्ञा दो गमनार्थ।
अन्तर्मन राधे प्रिये , मथुरागम परमार्थ।।८।।
कृष्ण नाम राधा सहित , गाएँगे जग लोक।
पाएँगे गोलोक को , हर पीड़ा सब शोक।।९।।
वचन प्रिये दो आज तुम,नहीं बहेगी नोर।
नैनाश्रु अनमोल है , सदा शक्ति दे मोर।।१०।।
राधा मांगी दो वचन ,प्रथम हृदय नित वास।
जबतक जीऊँ इस धरा , मुरलीधर आभास।।११।।
एक बार फिर से मिलूँ , जीवनान्त गोपाल।
हाँ बोले विह्वल हृदय , नंदज यशुमति लाल।।१२।।
अश्रु नैन भावुक हृदय , ममता नेह अपार।
छलिया मोरे लाल तू , मातु हृदय सुखसार।।१३।।
तुम मातु मोहि जन्मना, मैं तेरा हूँ लाल।
रहूँ यशोदा लाल बन , युग युग मैं गोपाल।।१४।।
नंदलाल जग में सदा , गायन हो सुखधाम।
माखन चोरी नाम से , सदा बनूँ बदनाम।।१५।।
ग्वाल बाल जीवन सखा ,गाये जग मधु गीत।
गोपी वल्लभ कृष्ण बन , रंगरसिया मन प्रीत।।१६।।
चीर चुराये गोपियाँ , रचा प्रेम की रास।
माखन मटका तोड़ना , मधुरिम जग आभास।।१७।।
लीलाधर संसार में , बालरूप अनमोल।
नंदग्राम गोकुल जगत , गाए यश मन घोल।।१८।।
सुन कान्हा मथुरागमन, रोकी कान्हा राह।
प्रेम रागिनी गोपियाँ , मन माधवमय चाह।।१९।।
प्राणेश्वर माधव प्रिये , चले छोड़ मँझधार।
तन मन धन अर्पण तुझे , तुम जीवन आधार।।२०।।
सुनो प्रिये मधु यामिनी , प्रेम जगत अनमोल।
भक्ति प्रेम रस मैं फँसा, सखियाँ तुझमें घोल।।२१।।
भक्ति प्रेम बिन स्वार्थ का,परम लोक अभिराम।
अश्रु नैन पीडा व्यथा , मोह जगत अविराम।।२२।।
निर्दय तुम छलिया प्रिये, मत दो तुम उपदेश।
तुम बिन है जीवन कठिन , हरो प्राण परमेश।।२३।।
अविचल ग्वालन प्रेम को,लखि विस्मित अक्रूर।
अश्रु नैन जलधार बन , निकले रथ ले दूर।।२४।।
लीलाधर अभिराम मन,मन माधव नित गूंज।
गायन नित सुखधाम जग,जीवन धन्य निकुंज।।२५।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली