मै नये दौर की बेटी हुं - कविता - चीनू गिरि

मै नये दौर की बेटी हुं
हर वार का जवाब देना जानती हुं ,
असहाय, कमजोर ,अबाला नही हुं !
अपनी शर्ते पर अपना जीवन जीती हुं,
मन मानी मै किसी की सहती नही हुं!

मै नये दौर की बेटी हुं
ऑटो रिक्श से लेकर हवाई तक उडती हुं,
हर कार्य क्षेत्र मे पुरुषों के बार रहती हुं!
आप दम पर अपनी पहचान बनाई है ,
घर तक चला सकती हुं मेरी अपनी कमाई है!

मै नये दौर की बेटी हुं
साडी नही मै जिन्स पहनती हुं ,
मगर अपनी मार्यादा मे रहती हं!
पापा की परी हुं माँ की दुलारी हुं,
हाँ मै बेटी हुं मगर बेटे कम नही हुं!
मै नये दौर की बेटी हुं

चीनू गिरि - देहरादून (उत्तराखंड)

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