सच मगर अब यहाँ नहीं चलता - ग़ज़ल - दिलशेर दिल

तुमने एक बार भी नहीं सोचा।
बिन तुम्हारे हमारा क्या होगा।

तुम तो उलझे हो ज़िंदगी में मगर,
ज़िंदगी है महज़ इक धोका।

झूट बोलूँ तो दिल लरजता है,
सच मगर अब यहाँ नहीं चलता।

आज कर लो जो अच्छा करना है,
वक़्त किसके लिए है कब रुकता।

उम्र भर की वो बात करते हैं,
साथ पल भर कोई नहीं चलता।

किस को बतलाऊँ हाल अब अपना,
"दिल" की अब तो कोई नहीं सुनता।

दिलशेर दिल - दतिया (मध्यप्रदेश)

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