आदमी स्वयं से लड़ रहा है - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

महाशक्ति की लालसा ने, कर दिया है बेहाल।
समस्त संसार को, मुश्किल में  दिया है डाल।

साम्राज्य विस्तार ने दुनिया, गर्त में  दी है डाल।
हैं हालात कुछ ऐसे, संसार के नकेल दी है डाल।

आज कल हालात हैं ऐसे, जानवर अचंभित खड़े हैं।
जहां मातम मनाने वाले, निर्जीव शरीर बिखरे पड़े हैं।

ढेरों शव को सड़कों से उठाने की तहजीब नहीं। 
उन्हें उठाने वाले की भी कोई, इंसानियत नहीं ।

विश्वस्वास्थय संगठन अब तक क्यों मौन था ?
प्रयोगशाला में कोरोना वायरस बनाया कौन था?

सामने आनी चाहिए असलियत, कपटी कौन था।
हमें समझ जाना चाहिए, कि दोषी है कौन था ?

सत्यता सबके  सामने, अब तो आनी ही चाहिए।
जीवन का प्रश्न है, हमें भी संभल जाना चाहिए।

मृतात्माएं गवाह होंगी, किसको मुंह दिखाएगा।
गैरों का बुरा करने वाले, मिट्टी में मिल जाएगा।

अपने किए की सजा तू  निश्चय ही पा जाएगा।
मानव निर्मित महामारी से, कैसे निजात पाएगा।

मानव निर्मित महामारी से इंसानियत लड़ रही है।
वहीं भूखी-प्यासी जनता, नियति से भिड़ रही है। 

क्या प्रकृति को मंजूर है, शायद मंजर यही।
कहीं मानव रहित न हो जाए सुंदर सी मही ।

ना जाने कब बीमारी से, निजात मिल पाती है ।
जैवीय बम से कहीं, चैन की शांति मिल जाती है।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर , एटा (उ०प्र०)

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