संदेश
अदृश्य योद्धा - कविता - समय सिंह जौल
कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ी जा रही जंग में, सेनापति के रूप में अदृश्य योद्धा लड़ रहे संग में। डटकर खड़े इन योद्धाओं को ना अच्छा मास्क अस्त्र …
कामयाबी का परिणाम - लघुकथा - गाज़ी आचार्य "गाज़ी"
एक छोटे से गाँव की बात है जहाँ चरनदास का परिवार रहता था जिसके दो बेटे राम और श्याम थे। राम और श्याम की माता कमला देवी उन्हें बचपन में …
लेकिन क्या मैं सोचता रह जाऊँगा - कविता - गोपाल मोहन मिश्र
रात में सूरज को तरसता हूँ, दिन में धूप से तड़पता हूँ, आख़िर क्या होगा मेरा...? मै हूँ कहाँ इस यात्रा में...? सोचता हूँ तो पाया! मुझे ना…
संस्कृति - कविता - बृज उमराव
वैदिक संस्कृति के पोषक बन, नैया के खेवनहार बनो। श्रृष्टि श्रजन की धुरी हो तुम, प्रकृति के पालनहार बनो।। राष्ट्र धर्म का निज दृढ़ता से,…
देखो ये भूखा प्यासा - कविता - अंकुर सिंह
देखो ये भूखा प्यासा, घर परिवार छोड़ चला। दो पल की रोटी ख़ातिर, अपनों से मुँह मोड़ चला।। उदर में जब उठती ज्वाला, खा रोटी होता मतवाला। क…
बोल लेखनी कुछ तो बोल - गीत - रमाकांत सोनी
अमन चैन शांति ग़ायब, सिंहासन हो डाँवाडोल, डगमगा रही हो व्यव्स्था, बोल लेखनी कुछ तो बोल। आस्तीन में सर्प पल रहे, नाटक कितने छल-छद्म के, …
कल्पने, धीरे-धीरे बोल - कविता - सुरेंद्र प्रजापति
कल्पने, धीरे-धीरे बोल। बोल रही जो स्वप्न उबलकर विह्वल दर्दीले स्वर में, कुछ वैसी ही आग सोई है मेरे, लघु अंतर में। इस पुण्य धरा पर देख…
मूर्ति - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
मौन रहकर भी सबकुछ कहती है, मन मे भक्ति बनकर रहती है, ये स्थित होती है धर्म स्थलों में, निर्जीव होकर भी जीवन्त रहती है। कभी मुस्काती, क…
संकल्प - गीत - संजय राजभर "समित"
मत बन अँधा गूँगा बहरा, क्या तेरी मजबूरी है? प्रकृति को बचाना ही होगा, ये संकल्प ज़रूरी है। वन गिरि पंछी ताल तलैया, अति शोषण क्यों जारी…
अन्तर्ग्रंथियाँ - कविता - प्रवीन "पथिक"
अजीब मन: स्तिथि में हूँ आजकल! धैर्य टूटता जा रहा आत्मविश्वास का; लक्ष्य, विषम परिस्थितियों से हो रहा धूमिल; अंतःकरण घोर निराशा से आबध्…
बड़ा झमेला है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
गाँव लगे हैं ठीक शहर में- बड़ा झमेला है। दरका-दरका लग रहा आकाश। है चुभ रहा काँटों सा भुजपाश।। तारे तो हैं मगर स्वयं में चाँद अकेला है।…
मीलों दूर रहकर भी - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
मीलों दूर रहकर भी, दिल की नज़दीकियाँ उनसे। वो अजनबी बन गए अपने, अनोखी भेंट हुई जिनसे। वीरान सुनी दिल की बग़िया में, प्रेम की कलियाँ हैं…
पिता और उनका अक्स - कविता - डॉ. सत्यनारायण चौधरी
कहता नज़र आता है जब हर एक शख़्स, पिता से ही मिलते हैं तुम्हारे नैन और नक़्श। बार-बार नज़र आता है मुझमें, मुझे पिता का ही अक्स। मेरे पिता ह…
सहनशीलता के संग ज़मीर का जंग - आलेख - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सहनशीलता के संग ज़मीर का जंग सदैव ही मानवजाति के पुरुषार्थ, संयम, धैर्य, साहस, आत्मबल और आत्मविश्वास की परीक्षा मानी जाती रही है। जीवन …
रण का क्षण - कविता - रवि कुमार दुबे
यह रण का क्षण है, उठो, मत भागो। कब तक यूँ नींद में रहोगे, अब उठो अब तो जागो। रवि अब रहा है चमक, दिखा रहा अपनी धमक। समय की पुकार सुनो, …
अग्निपथ की दिशा - कविता - रामासुंदरम
धधकती ज्वाला में, जल तलाश रहें हैं। उजड़ते उपवन में, पुष्प सँजो रहे हैं। सुनहरा क्षितिज भी, अब धधक रहा है। अमृत के इस प्याले में, कुकु…
मेरी ख़बर दे आओ - कविता - बजरंगी लाल
सावन की काली घटाओं सुनों, अम्बर में बहती हवाओं सुनों, उसके आँगन में जा बरसाओ रे! मेरी कुछ तो ख़बर दे आओ रे! आसमाँ में विचरतेे चाँद सुनो…
बेचैन आँखें - कविता - नीरज सिंह कर्दम
बेचैन आँखें क्या देख रही है? वो सब जो शायद आप नहीं देख पा रहे हैं! जातिवाद के नारे धर्म ही सर्वोपरि है कहकर हाथों में तलवारें लहराते ह…
साथ-साथ हैं - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
दीपू एक ऐसा बालक था जो सेठ मानिकचन्द अग्रवाल को वर्षो पूर्व सड़क पर लावारिस और विकल अवस्था रोता बिलखता मिला था। तब उसकी आयु लगभग पाँच छ…
गाँव की सरहद के पार - कविता - लखन "शौक़िया"
सुना है ऐसा लोग बिक गए, दरवाज़े-दीवार बिक गए, चीख़-पुकार भी बिक गई उनकी, गाँव की सरहद के पार। हीरा मोती बैल बिक गए, मुन्शी के ख़्याल बिक …
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