बोल लेखनी कुछ तो बोल - गीत - रमाकांत सोनी

अमन चैन शांति ग़ायब,
सिंहासन हो डाँवाडोल,
डगमगा रही हो व्यव्स्था,
बोल लेखनी कुछ तो बोल।

आस्तीन में सर्प पल रहे,
नाटक कितने छल-छद्म के,
खेल खिलाड़ी खेल रहे,
नीति नियम रंग बदल के।

पहले वाली बातें कहाँ, 
लुप्त सा हुआ प्रेम अनमोल,
सद्भावों की बहा सरिता,
बोल लेखनी कुछ तो बोल।

भ्रष्टाचार रिश्वतख़ोरी,
चोरी लूट सीनाज़ोरी,
उज्जवल धवल वसन,
आश्वासन बातें कोरी।

झूठे वादों प्रलोभन से,
जन मन हो जाता रमझोल,
भटक रहे राही पथ में,
बोल लेखनी कुछ तो बोल।

जहाँ क़दम लक्ष्य को बढ़ते,
उतने ही वार गिराने को,
मंज़िल मिले राही को,
बाधाएँ पथ भटकाने को।

डोर खींच रहे रिश्तो की,
जो ख़रीद लिया हो मोल,
निडरता से मुखरित होकर,
बोल लेखनी कुछ तो बोल।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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