आराधना प्रियदर्शनी - बेंगलुरु (कर्नाटक)
मूर्ति - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
मंगलवार, जुलाई 06, 2021
मौन रहकर भी सबकुछ कहती है,
मन मे भक्ति बनकर रहती है,
ये स्थित होती है धर्म स्थलों में,
निर्जीव होकर भी जीवन्त रहती है।
कभी मुस्काती, कभी हँसाती,
डुबोती बचपन को प्यार में,
ख़ुशी देती है ख़ुद अचल होकर,
जो बिकती है बाज़ार में।
कभी ये धरकर रूप शहीदों का,
हमको उनकी याद दिलाए,
कभी चँचलता, कभी मृदुलता देकर,
हर मूर्ति जीवन दर्शाए।
कभी तो अपने हास्य विनोद से,
तरह तरह के रंग दिखलाए,
कभी नयन मे करुणा भरकर,
सागर अश्रु मोति छलकाए।
हमेशा सजी नई संवेदनाओं से,
और नई स्फूर्ति से,
पाते हम जीने की प्रेरणा,
इक बे-जान मूर्ति से।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर