रण का क्षण - कविता - रवि कुमार दुबे

यह रण का क्षण है,
उठो, मत भागो।
कब तक यूँ नींद में रहोगे,
अब उठो अब तो जागो।

रवि अब रहा है चमक,
दिखा रहा अपनी धमक।
समय की पुकार सुनो,
ज्वाला है रही धधक।

विश्राम की नही,
आवाह्न की अब बारी है।
मन की आवाज़ सुनो,
ये युद्ध की तैयारी है।

तुम राणा बनो या बनो शिवाजी,
जीतना होगा तुमको ये बाजी।
ये रण का क्षण है प्यारे,
लगा दो अपने जान की बाजी।

दुश्मन कभी निर्भीक न हो,
तुम किंचित भयभीत न हो।
तुम विश्व विजय कर वापस आओ,
ये हार तुम्हारी मीत न हो।

समय की सुनो पुकार,
दुश्मन के सीने में करो वार।
ये युद्ध की घड़ी है,
हर पल रहना तुम तैयार।

तुम आगे बढ़ो और विजयी हो,
तुम वीरता की पराकष्ठा बनो।
देश का हर बालक तुम सा बने,
तुम उनके लिए मंज़िल का रास्ता बनो।

ये देश तुम्हारा नमन करे,
तुम्हें भारत माँ का लाल कहे।
तुम कभी न झुकना और न रुकना,
माँ भारती तुमसे निहाल रहे।

रवि कुमार दुबे - सोनभद्र (उत्तर प्रदेश)

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