सुना है ऐसा लोग बिक गए,
दरवाज़े-दीवार बिक गए,
चीख़-पुकार भी बिक गई उनकी,
गाँव की सरहद के पार।
हीरा मोती बैल बिक गए,
मुन्शी के ख़्याल बिक गए,
ग़ालिब के पैग़ाम बिक गए,
गाँव की सरहद के पार।
ममता का आँचल बिक गया,
बापू की फटकार बिक गई,
बहना के भी ताने बिक गए,
गाँव की सरहद के पार।
तख़्ती झोला क़लम बिक गई,
रसिया दंगल ग़ज़ल बिक गई,
आँखों में थी शरम बिक गई,
गाँव की सरहद के पार।
चौराहे का दिया बिक गया,
हिंदू सिख मियाँ बिक गया,
सब यूँ ही "शौक़िया" बिक गया,
गाँव की सरहद के पार।
लखन "शौक़िया" - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)