संदेश
साथ-साथ हैं - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
दीपू एक ऐसा बालक था जो सेठ मानिकचन्द अग्रवाल को वर्षो पूर्व सड़क पर लावारिस और विकल अवस्था रोता बिलखता मिला था। तब उसकी आयु लगभग पाँच छ…
गाँव की सरहद के पार - कविता - लखन "शौक़िया"
सुना है ऐसा लोग बिक गए, दरवाज़े-दीवार बिक गए, चीख़-पुकार भी बिक गई उनकी, गाँव की सरहद के पार। हीरा मोती बैल बिक गए, मुन्शी के ख़्याल बिक …
विरह गाते हो - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 जब मन होता है आते हो। जब जी चाहे तब जाते हो।। आते जाते बिना बताए, हमको अक्सर चौंका…
वीर बन - कविता - तेज देवांगन
जो टूटे ना वो तीर बन, दुश्मनों के लिए शमशीर बन, हालातो से लड़ कर तू, ज़िंदगी से तू वीर बन। गरजते है ये बादल तो, चमकती है बिजलियाँ, तू र…
बचाले मेरे गाँव को भगवान - कविता - समुन्द्र सिंह पंवार
पहले जैसा नहीं रहा गाँव आज मेरा। देख कर माहौल उतर जाता है चेहरा। देता नहीं कोई अब तो रोटी गाय को, दूध-दही छोड़कर पीएँ सब चाय को। चींटिय…
सागर किनारा - कविता - अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी"
मैं और सागर किनारा अस्त होता सूरज, आसमानी बादल, लालिमा भरा लहरों में रवानगी, शांत गहरा पानी। रुकी रुकी सी पहर जीवन का चलचित्र नज़ारा …
सोचो तुम विचार करो तुम - कविता - शिवचरण सदाबहार
सोचो तुम विचार करो तुम, सबसे अच्छा व्यवहार करो तुम। पैसा तुम्हारा, तुम्हारे काम आएगा, किसी को नहीं तुम देने वाले। ग़ुरूर जो घर कर ग…
दहेज दानव - कविता - सरिता श्रीवास्तव "श्री"
दहेज दानव बढ़ता ही जाए, सुरसा के जैसा मुँह है इसका, बेटियों का जीवन लीलता ही जाए। दहेज समाज के लिए अभिशाप है, इसमें बेटियों की बलि चढ़…
संरक्षण करो - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
जल, जंगल, ज़मीन ये सिर्फ़ प्रकृति का उपहार भर नहीं है, हमारा जीवन भी है हमारे जीवन की डोर इन्हीं पर टिकी है, धरती न रहेगी तो आख़िर कैसे …
तस्वीर तेरे दिल में ख़ुद का बनाऊँ - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
किया हूँ वफ़ा बे-इंतिहा मुहब्बत, तस्वीर तेरे दिल में ख़ुद का बनाऊँ। ख़ुद से लगाऊँ तेरे हाथ मेंहदी, चन्द्रकला भाल सीथी माँग सजाऊँ। तेरे दि…
उम्मीद का दिया - कविता - ऋचा तिवारी
तुम्हारे आने की ख़ुशी कुछ यूँ, मेरे चेहरे पर निखर आती है। छुपी हुई लबो की मुस्कुराहट, जाने क्यूँ सबको नज़र आती है। वैसे तो छोटी छोटी बात…
अवसाद और चिंता - आलेख - निशांत सक्सेना "आहान"
जब मनुष्य किसी भी मनोभाव से दुखी होता है, हताहत होता है। वही स्थिति अवसाद कहलाती है। यह एक मनोवैज्ञानिक बीमारी मानी जाती है। अवसाद का …
प्रबल चाह - कविता - रूचिका राय
असीमित इच्छाएँ, अनगिनत सपने प्रबल चाह उनकी पूर्ति की। रिश्तों से परिपूर्ण हो जीवन, नही कभी द्वेष रहे जीवन की। प्रेम पूरित हो जीवन अपना…
शाम ढले घर का रस्ता देख रहे थे - ग़ज़ल - रोहित गुस्ताख़
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा तक़ती : 22 22 22 22 22 2 शाम ढले घर का रस्ता देख रहे थे। कुछ क़ैद परिन्दे पिंजरा देख रहे थे। सब…
जीवन की कड़ियाँ कितनी सुनहरी - गीत - डॉ. शंकरलाल शास्त्री
बारिश की झड़ियाँ कितनी सुनहरी, जीवन की कड़ियाँ कितनी सुनहरी। ख़ूबी बनी जो बारिश की बूँदें, रचना बनी जो अमृत की बूँदें, गीतों का ज़रिया …
आदि गुरु शंकराचार्य - आलेख - मंजिरी "निधि"
2500 साल पहले सदभाव की अनुपस्थिति थी। मानव जाती पवित्रता और अध्यात्मिकता से वंचित थी। तभी केरल के कालडी नामक ग्राम में नंदूबी ब्राम्हण…
वह तो झाँसी वाली रानी थी - कविता - गाज़ी आचार्य "गाज़ी"
चलो सुनाऊँ एक कहानी जिसमें एक रानी थी, मुख से निकले तीखे बाण वो शमशीर दिवानी थी। थी वो ऐसी वीरांगना उसकी शौर्य भरी जवानी थी, सर पर सज…
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो - कविता - शमा परवीन
हक़ हैं हमें भी कहने दो, बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो। हम भी करेंगे ऊँचा काम मत रोको हमें, आगे बढ़ने दो, बेटी हूँ हमें भी शान से जी…
हम जान गए साधो - ग़ज़ल - मनजीत भोला
अरकान : मफ़ऊलु मुफ़ाईलुन मफ़ऊलु मुफ़ाईलुन तक़ती : 221 1222 221 1222 हम जान गए साधो बाज़ार सियासी है। बातें तो अदब की हैं किरदार सियासी है।…
छाया है पिता - कविता - डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा"
बरगद की घनी छाया है पिता, छाँव में उसके भूलता हर दर्द। पिता करता नहीं दिखावा कोई, आँसू छिपाता अन्तर में अपने। तोड़ता पत्थर दोपहर में …
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