संरक्षण करो - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

जल, जंगल, ज़मीन
ये सिर्फ़ प्रकृति का 
उपहार भर नहीं है,
हमारा जीवन भी है
हमारे जीवन की डोर
इन्हीं पर टिकी है,
धरती न रहेगी तो
आख़िर कैसे रहोगे?
जब जल ही नहीं होगा 
तो प्यास कैसे बुझाओगे?
पेड़-पौधे ही जब नहीं होंगे
तो भला साँस कैसे ले पाओगे?
अब ये हम सबको 
सोचने की ज़रूरत है,
हर एक की हम सबको ज़रूरत है,
जब इनमें से किसी एक के बिना 
दूजा निपट अधूरा है,
फिर विचार कीजिए
हमारा अस्तित्व भला
कैसे पूरा है?
उदंडता और मनमानी बंद करो,
जीना और अपना अस्तित्व 
बचाना चाहते हो तो
सब मिल कर जल, जंगल, 
ज़मीन का संरक्षण करो,
ईश्वरीय व्यवस्था में बाधक
बनने के तनिक न उपक्रम करो।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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