दहेज दानव - कविता - सरिता श्रीवास्तव "श्री"

दहेज दानव बढ़ता ही जाए,
सुरसा के जैसा मुँह है इसका,
बेटियों का जीवन लीलता ही जाए।
दहेज समाज के लिए अभिशाप है,
इसमें बेटियों की बलि चढ़ती है।
किन्तु इस दहेज यज्ञ में आहुति देने वाले
माता-पिता की अहम भूमिका है।
किसी के बेटे की सरकारी नौकरी लगी,
किसी कम्पनी में अच्छा पैकेज या कोई
अधिक कमाई वाला बिज़नेस।
बोली लगना शुरू, दस लाख, बीस लाख,
तीस लाख, पचास लाख, एक करोड़।
अरे भाई जब दक्षिणा की बोली लग रही है तो,
पंडित जी पूजा कराने कहाँ जाएँगे?
जहाँ दक्षिणा सबसे ऊँची हो।
अब बताइए दहेज लेने वाले का दोष!
बढ़-चढ़ कर दिया जा रहा है,
तभी तो वह ले रहा है।
किसी की बेटी 12वीं पास, किसी की बी.ए.।
माता-पिता पर अकूत माया,
फिर वह लड़की लड़के की जोड़ी कहाँ देखेगा?
बेटी के खेलने के लिए गुड्डा खरीदेगा,
वह खरीद भी सकता है!
लेकिन कुछ लोग दहेज से परहेज़ भी करते हैं,
बेटी के क़ाबिल वर भी चाहते हैं, 
किन्तु बेटी को क़ाबिल बनाना नहीं चाहते!
भारी दहेज दे सकते हैं किंतु
बेटी की क़ाबिलियत पर ख़र्च नहीं कर सकते।
एस.डी.एम. आई.ए.एस. अकाउंटेंट के लिए
बोली मत लगाओ!
बेटी को आगे बढ़ाओ, ऑफिसर बनाओ!
फिर माता-पिता को बोली नहीं लगानी पड़ेगी,
मुफ़्त में शादी होगी, जैसी बेटी की क़ाबिलियत होगी,
वैसा ही क़ाबिल वर मिलेगा बिना दहेज!!
बेटी भी फ़ख़्र करेगी सम्मान से जी सकेगी,
बिना दहेज!
बेटियों के बारे में माता-पिता को सोचना होगा।
समाज ने किससे कहा कि दहेज दो या मत दो?
ये तो माता-पिता हैं जो हैसियत का ढिंढोरा पीटते हैं।
ग़रीब की शादी नहीं देखी क्या? 
मज़दूर दूल्हा मज़दूर दूल्हन को एक जोड़ी कपड़े में
ब्याह कर ले जाता है, दोनों की क़ाबिलियत समान है।
कैसा दहेज!
मज़दूर की दुल्हन जला के मार दी कभी सुना है क्या?
या तलाक़ का मुक़दमा कोर्ट में चल रहा है सुना है क्या?
एक साथ दोनों मज़दूरी करते हैं, मस्त रहते हैं।
एक साथ बनाना खाना,
फावड़ा तसला उठा के कहीं भी चल देना!
बराबर की क़ाबिलियत फिर कैसा दहेज?
कैसा दहेज…?

सरिता श्रीवास्तव "श्री" - धौलपुर (राजस्थान)

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