सागर किनारा - कविता - अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी"

मैं और सागर किनारा
अस्त होता सूरज, 
आसमानी बादल, लालिमा भरा
लहरों में रवानगी, शांत गहरा पानी। 
रुकी रुकी सी पहर
जीवन का चलचित्र नज़ारा
चहुँओर अथाह ख़ामोशी
छू कर पाँवों को,
कलोल करती प्यासी हिलोर।
सुलगती रेत को,
सर्द करता तुम्हारा लिखा नाम
रंग बिरंगे एहसासों से भरी रेत
रेत कांति रंगों से उभरती तुम्हारी छवि।
शांत और सुकून का इक क़तरा
तेरी यादों के सागर में गोता भरता
ठंडी हवा का मासूम झोंका
वफ़ा की नमी एहसासों में भरता
सूखी रेत पर बैठी
तुम्हारी स्मृति की नदियों में बहती
प्यार के सागर में सम्पूर्ण होती मैं।

अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी" - गुवाहाटी (असम)

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