वीर बन - कविता - तेज देवांगन

जो टूटे ना वो तीर बन,
दुश्मनों के लिए शमशीर बन,
हालातो से लड़ कर तू,
ज़िंदगी से तू वीर बन।

गरजते है ये बादल तो,
चमकती है बिजलियाँ,
तू रुक नहीं तोड़ दे, सारे अर्चन,
तू ऐसा शूरवीर बन।

हालातो से जब जब जिसने भी,
लड़कर ख़ून पसीना सींचा हैं,
दर्दों को कर किनारा,
बनाया घर बग़ीचा है,

सहज भला यहाँ क्या मिला,
वनवास चौदह वर्ष प्रभु भी जाते है,
कर कर्म की लेख पे, दर्द पाकर,
वो रघुवीर कहलाते है।

तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos