अवसाद और चिंता - आलेख - निशांत सक्सेना "आहान"

जब मनुष्य किसी भी मनोभाव से दुखी होता है, हताहत होता है। वही स्थिति अवसाद कहलाती है। यह एक मनोवैज्ञानिक बीमारी मानी जाती है। अवसाद का कारण कुछ भी हो सकता है पढ़ाई, भविष्य की चिंता, प्रेम संबंधों में तनाव, संबंधों की कड़वाहट इत्यादि। अवसाद का बेहद महत्वपूर्ण कारण होता है वातावरण, यदि हम एक नकारात्मक वातावरण व नकारात्मक लोगों के साथ रहेंगे तो अवसाद का स्तर बढ़ जाएगा। अवसाद अक्सर दिमाग़ के न्यूरोट्रांसमीटर्स की कमी के कारण भी होता है, यह दिमाग़ में पाया जाने वाला रसायन होता है जो दिमाग़ और शरीर में संपर्क स्थापित करता है। वैसे तो मनुष्य जब से पैदा होता है तभी से उसे चिंताएँ घेर लेती हैं। जीवन की कोई भी अवस्था ऐसी नहीं होती जिसमें चिंताएँ व परेशानियाँ ना हो, परंतु चिंता को अपने ऊपर हावी होकर उसे बीमारी का रूप दे देना कोई बुद्धिजीवीता का प्रमाण नहीं। अकेलापन अवसाद का प्रमुख कारण है यह देखा गया है कि भीड़ में रहने वाले लोग या अत्याधिक सामाजिक लोगों की तुलना में अकेले व एकाकी लोग जल्दी अवसाद का शिकार हो जाते हैं क्योंकि उनके पास अपनी बात कहने का या कोई सुनने वाला नहीं होता है उदाहरणत: अब परिवारों में अलग-अलग रहने का प्रचलन चल रहा है जिसमें पति-पत्नी व छोटे बच्चे अकेले रहते हैं, कोई भी संयुक्त परिवार में रहना पसंद नहीं करता है उसका असर यह होता है कि जहाँ पर केवल पति-पत्नी अकेले रहते हैं तो वे अपने ऑफिस के व बाहर के दबाव से एक दूसरे के ऊपर निराशाजनक स्थिति को निकालते हैं। जिनसे उनके आपसी संबंधों में दरार आती है और अगली पीढ़ी पर भी बुरा असर पड़ता है। 

अवसाद हमें मानसिक रूप से निकृष्ट कर देता है। सोच विचार की शक्ति को भी ख़त्म कर देता है आत्मशक्ति में भी कमी आ जाती है। जो हमें दिन प्रतिदिन क्षीण बनाती है। अवसाद या चिंता में मनुष्य नशे का सहारा लेने लगता है, जो शरीर के लिए अति नुकसानदायक होता है। ऐसा नहीं है कि अवसाद पुरुष को ज़्यादा स्त्री को कम होगा या  स्त्री को ज़्यादा पुरुष को कम होगा जो भी व्यक्ति मानसिक रूप से कमज़ोर होता है वह अवसाद का शिकार जल्दी हो जाता है। अवसाद से बचने का सर्वोत्तम अचूक उपाय है मानसिक शक्तिशाली होना जिसके लिए योगासन, ध्यान आदि बेहद अच्छे उपकरण है। 

हमें हमेशा सकारात्मक वातावरण में रहना चाहिए स्वयं को ख़ुश रखना चाहिए साधन चाहे जो हो। कार्य स्थल से लौटने के बाद परिवार के साथ समय व्यतीत करना चाहिए। अपने आप को अपनी रुचियों में व्यस्त रखना चाहिए संगीत अवसाद से निपटने का बेहद अच्छा हथियार है। प्राकृतिक वातावरण का आनंद लेना चाहिए। हर वक़्त कमरे में बंद रहना, मोबाइल का अत्याधिक प्रयोग भी अवसाद का एक बहुत बड़ा कारक है। जो भी मिले उसे भगवान का दिया हुआ समझ कर ख़ुश रहना चाहिए भगवान आपके लिए जो भी करता है वह कुछ ना कुछ सोच कर और अच्छा ही करता है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इस बात को हमें समझना चाहिए लोगों से मिलना जुलना चाहिए हँसना बतियाना चाहिए। इन सब हथियारों का प्रयोग कर हम अवसाद पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और जीवन की बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाल सकते हैं। अवसाद कोई बीमारी नहीं है बल्कि हम स्वयं ही इसे बीमारी का रूप दे देते हैं, तो बस हँसते रहिए हँसाते रहिए और ज़िंदगी में आगे क़दम बढ़ाते रहिए।

निशांत सक्सेना "आहान" - गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)

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