आदि गुरु शंकराचार्य - आलेख - मंजिरी "निधि"

2500 साल पहले सदभाव की अनुपस्थिति थी। मानव जाती पवित्रता और अध्यात्मिकता से वंचित थी। तभी केरल के कालडी नामक ग्राम में नंदूबी ब्राम्हण के घर जन्में इस शंकर नाम के बालक ने उम्र के सात वर्ष में वेदों का विद्वान्, बारवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत और सोलहवे वर्ष में ब्रम्ह सूत्र भाष्य रच दिया। शताधिक ग्रंथों की रचना करने वाले आदि गुरु शंकराचार्य कहलाए। ये अद्वैत वेदांत के संस्थापक थे। लुप्त सनातन धर्म के जीर्णोद्धार के लिए तीन बार भारत भ्रमण कर चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना और चार कुम्भों की व्यवस्ता की। नागा सन्यासियों के सात अखाडों की स्थापना की जिससे धर्म सनातन सदा जागृत रहे। ये चार पीठ ब्रम्हा जी के मुख से निकले वेदों से निकले शास्त्रों को सुरक्षित रखें हुए हैं।

रामेश्वरम का श्रंगेरी मठ जिसने यजुर्वेद को सुरक्षित रखा है। यहाँ से दीक्षा प्राप्त हुए सन्यासी अपने नाम के पीछे सरस्वती या भारती लगाते हैं। ये देश का इतिहास, अध्यात्म और धर्म ग्रंथों की रक्षा करते। इस मठ का महावाक्य "अहं ब्रह्मास्मि" है। जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ जिसमें रुग्वेद को सुरक्षित रखा है। यहाँ से दीक्षा प्राप्त हुए सन्यासी अपने नाम के पीछे वन और अरण्य लगाते हैं। ये जंगलों में रहकर धर्म और प्रकृति की रक्षा करते हैं। इस मठ का महावाक्य "प्रज्ञानं धर्म" हैl द्वारकाधाम का शारदा मठ जिसमें सामवेद को सुरक्षित रखा है। यहाँ से दीक्षा प्राप्त हुए सन्यासी अपने नाम के पीछे तीर्थ और आश्रम लगाते हैं। ये तीर्थो और प्राचीन मठों की रक्षा करते हैं। इस मठ का महावाक्य "तत्वमसि" है। बद्रीनाथ में ज्योतिर्मठ है जिसमें अथर्ववेद को सुरक्षित रखा है। यहाँ से दीक्षा प्राप्त किए सन्यासी अपने नाम के पीछे गिरी, पर्वत और सागर लगाते हैं। ये वहाँ के निवासी, औषधि और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करते हैं। इस मठ का महावाक्य "अयमात्मा" है।

इस तरह आदिगुरु अलौकिक प्रतिभा, प्रकाण्ड पण्डित्य, प्रचंड कर्मशीलता, सर्वोत्तम त्याग युक्त भगवतभक्ति और योगेशवर्य से सनातन धर्म की संजीवनी सिद्ध हुए। राष्ट्र की एकता व अखंडता के लिए समर्पित ऐसे महान विश्व गौरव आचार्य श्री शंकराचार्य को मेरा नमन।

मंजिरी "निधि" - बड़ोदा (गुजरात)

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