जीवन की कड़ियाँ कितनी सुनहरी - गीत - डॉ. शंकरलाल शास्त्री

बारिश की झड़ियाँ कितनी सुनहरी,
जीवन की कड़ियाँ कितनी सुनहरी। 

ख़ूबी बनी जो बारिश की बूँदें,
रचना बनी जो अमृत की बूँदें,
गीतों का ज़रिया बारिश की बूँदें,
भीगी जो ज़ुल्फों पे बारिश की बूँदें।

टप-टप सी करती बारिश की बूँदें,
टक-टक सी करती जीवन की यादें,
हर पल बढ़ो तुम जीवन में आगे,
प्रतिपल गढ़ो तुम जीवन को आगे।

कंठों से ऋषियों की गूँजी ऋचाएँ,
ख़ुशियों का ज़रिया वर्षा की यादें,
काल खुशी का बारिश की झड़ियाँ,
ताल तलैया ख़ुशियों की लड़ियाँ।

हरियाली की आभा जो फैली,
चारों तरफ़ जो ख़ुशबू जो फैली,
सुंदर सी प्यारी फूलों की प्यारी,
महकी घनी है फूलों की क्यारी।

कलरव जो करते पेड़ों पे पंछी,
नृत्य जो करती छत पे मयूरी,
दिल भी जो भीगे नयनी मृगी सा,
स्वागत को आतुर यहाँ तो सभी सा।

जीवन में आता पतझड़ कभी तो,
जीवन में आता सावन कभी तो,
कुदरत की कितनी रीति निराली,
गहरी ऋतुओं की सीख निराली।

बारिश की बूँदें जीवन में लाओ,
वारिस की कड़ियाँ गहरी बनाओ,
छू लो बुलंदी की राहें जो तुम तो,
पीछे मुड़ो ना कहीं ना जो तुम तो।

कामयाबी अब जो तुम्हारी,
छाने लगी जो अब तो ख़ुमारी,
रास न आई साख तुम्हारी
बदनामी की छाप लगाई।

जीवन का सीधा राज़ यही रे,
मेहनत का सुंदर काज यही रे,
संघर्षों की वादी सुनहरी,
मंज़िल की जो चाबी सुनहरी।
 
डॉ. शंकरलाल शास्त्री - जयपुर (राजस्थान)

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