संदेश
विजय पर्व - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हम सब हर साल रावण के पुतले जलाते हैं विजय पर्व मनाते हैं, शायद मुगालते में हम खुद को ही भरमाते हैं। वो सतयुग था जब राम ने रावण को मार…
हे पार्थ - कविता - डॉ. अवधेश कुमार अवध
हे पार्थ! उठो गांडीव गहो, अब कृष्ण न आने वाले हैं। यह युद्ध तुम्हारा अपना है, पांडव - उर में सौ छाले हैं।। जिस मोह जाल में हो निमग्न, …
राम-राज को क्यों करते बदनाम - कविता - बजरंगी लाल
इस राम-राज का अब तक था मैं, सुनता बड़ा बखान, जहाँ नहीं है कोई सुरक्षित माँ, बेटी, बहन व जवान, इसी राम-राज में लूट रहे हैं, इज्ज़त कुछ …
नसीहत - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
सूबे में ऐसी सरकार चुनिए। शासक नहीं सेवादार चुनिए। आवाम का सुख दुख महसूस हो, जुल्म के खिलाफ प्रतिकार चुनिए। रोटी, कपड़ा…
सूरज का अभिनंदन - कविता - मयंक कर्दम
आसमान भी तरस गया, कोयल की आवाज सुनने को। धरती में पानी से भीग गई, कोयल के साथ गुनगुनाने को।। कलियाँ भी खिल गई, सूरज को मुख दिखलाने क…
विक्रम बेताल संवाद - कविता - डॉ. राजेन्द्र गुप्ता
जब सितम्बर 1995 में पूरे भारत की गणपति मूर्तियों ने दूध पिया था। दुग्ध पान का लगा जब श्री गणेश को चाव। नंदीश्वर शामिल हुए उनको आया ता…
रावण - कविता - प्रीति बौद्ध
तुम हर बार किडनैपर रावण जलाते हो, और वर्तमान बलात्कारियों से रिश्ता निभाते हो। रोज हो रहे हैं बलात्कार, चारों तरफ है हाहाकार। बेटियों …
चली डोली अरमानों की - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
चली डोली अरमानों के सुनहले पथ, सजा ख्वाव खूबसूरत ले अफ़साने। भावों को समेटे अन्तर्मन स…
देर हो गई हैं - कविता - कर्मवीर सिरोवा
उम्र तमाम राहें ठहकर पक सी गई है, मिरे अजीजों के घर दुल्हन आ गई है, बादलों की रंगत कुछ पहले आ गई हैं, अनचाही पुष्पा मिरे सर पर बैठ गई …
जीवन घुँघरू है - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
इस दिल में बस तू ही तू है साँसों में तेरी खुशबू है अहसासों की हलचल में तू तू इक प्यारा -सा जादू है तुझमें दो-दो रूह छुपी हैं तू…
प्रकृति में आओ - गीत - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
प्रकृति में आकर समाकर तो देखो मिट्टी को माथे पर लगा कर के देखो मन भीग जाये और हृदय भीग जाए रिमझिम बारिश में नहाकर तो देखो कभी मयूर बन…
पछतावा था - कविता - कुन्दन पाटिल
प्रेम का भुत जब उतरा था कुछ कुछ होश मुझे आया था कुछ समझ भी मेरी तब बढ़ी थी यह तो प्रेम नहीं! मुझे ऐसा लगा था वासना लालसा का आकर्षण मात…
मैं भी कवि बनूँगा - कविता - शिवम् यादव "हरफनमौला"
एक दिन मैं भी भारत की उभरती छवि बनूँगा। कवि बनूँगा, कवि बनूँगा, मैं भी कवि बनूँगा।। आज से अपने लक्ष्य के पथ पर, चलना हमने ठान लिया है…
मित्रता - कुण्डलिया छंद - प्रवीन "पथिक"
जीवन में ग़म बहुत है, लेकिन है इक बात। सारे ग़म कट जाते हैं, यदि हो मित्र का साथ। यदि हो मित्र का साथ, सुख दुःख में काम आए। धैर्य, …
अवसादों में जकड़ती युवा पीढ़ी - लेख - देवासी जगदीश
जीवन में खुश रहने के लिए व्यक्ति का शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के साथ साथ-साथ मानसिक रूप से स्वस्थ रहना बेहद जरूरी है। लेकिन आज की वास…
भारत के हैं हम वासी प्यारे - कविता - बाबू लाल पारेंगी
भारत के हैं हम वासी प्यारे, रहते प्यारे होकर भी न्यारे। सभी धर्मों का वास यहाँ पर रहते मिलकर नहीं हम हारे।। दिशा सबकी एक नहीं होती, एक…
तुम जीवन शृङ्गार प्रिये - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
प्राणनाथ अनुभूति हृदय प्राणप्रिये नव आश लिये। मधुमास मधुर मकरन्द मधुप अधर मृदुल हास प्रिये। गन्धमाद शिखर पुष्पित पाटल कोमल तनु चारु प…
वहशी मानव - कविता - भागचन्द मीणा
कहते हैं आदित्य मनुज तुम, कौन राह पर निकले हो बदल चुके हो अन्धकार में, असुर राह पर निकले हो। लालच में अंधे हो कर तुम, खुद को कितना बदल…
मुझे मत कहना - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
मेरा बालक मुझसे कहने लगा पापा मुझे राम मत कहना क्योंकि मैं किसी धोबी के कहने से अपनी पत्नी को नही त्यागूँगा। पापा मुझे शिवशंकर भी मत …
इंसानियत का बाज़ार कर गया - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
यूं भी कोई मुझको बे-ज़ार कर गया! बिला - वजह ही तक़रार कर गया! खुला रक्खा था दर मैंने भी अपना, खड़ी कोई यहां दीवार कर गया! बिना आंग…
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