भारत के हैं हम वासी प्यारे - कविता - बाबू लाल पारेंगी

भारत के हैं हम वासी प्यारे,
रहते प्यारे होकर भी न्यारे।
सभी धर्मों का वास यहाँ पर
रहते मिलकर नहीं हम हारे।।

दिशा सबकी एक नहीं होती,
एक नहीं होता सबका रूख़।
मेहमानों की आवभगत होती
मिलकर रहने से होता सुख।।

सभी जन एक होकर रहते हैं,
सबके संग  मौज में  रहते हैं।
यहाँ पहाड़ों से झरने बहते है
मानों हमसे वो कुछ कहते है।।

कभी दिशाएं रूख़ बदलती है,
कभी रूख़ दिशाएं बदलता है।
फिर भी कोशिश हम करेंगे,
दिशा  देख हम रूख़ करेंगे।।

मन के मंदिर सबके अलग हैं,
अलग हैं  सबके  हृदय उद्गार।
मन मंदिर में हम भ्रम न रखेंगे,
दिल से दिल में हम प्रेम रखेंगे।।

हमें दिशाओं में रूख़ रखना है,
सब दिलों का स्वाद चखना है।
अलग-अलग है  भाषा सबकी,
इन यादों को सम्भाल रखना है।।

हमने  भाषा से  भाषा सीखी,
सबकी बोली से बोली सीखी।
विभिन्नता में दिखती है एकता,
एकता में दिखती है विभिन्नता।।

भिन्न नहीं हम सब एक रहेंगे,
एक सा सब व्यवहार करेंगे।
भारत के हैं हम वासी प्यारे,
रहते प्यारे होकर भी न्यारे।।

भारत के हम वासी प्यारे,
रहते प्यारे होकर भी न्यारे।
सभी धर्मों का वास यहाँ पर
रहते मिलकर नहीं हम हारे।।

बाबू लाल पारेंगी - जाखल, साँचोर (राजस्थान)

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