जीवन में खुश रहने के लिए व्यक्ति का शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के साथ साथ-साथ मानसिक रूप से स्वस्थ रहना बेहद जरूरी है।
लेकिन आज की वास्तविकताओं को देखते हुए नहीं लगता कि व्यक्ति मानसिक रूप से खुश हैं।
वर्तमान दौर में वैश्विक स्तर पर अवसाद (डिप्रेशन) बीमारी से लोग निरन्तर शिकार बनते जा रहे हैं उसमें भी विशेषकर- युवा पीढ़ी।
कई शोध संस्थानों द्वारा जारी किए गए आंकड़ों में हर वर्ष अवसाद से ग्रसित व्यक्तियों में निरन्तर बढ़ोतरी होती जा रही है ।
उन आंकड़ों से हम स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं कि इसी तरह युवा अवसादों का शिकार होता रहा तो हमारे द्वारा भारत के उज्ज्वल भविष्य की कामना करना सिर्फ कल्पना ही रह जाएगी क्योंकि आज हम जिस तरह से अवसादों के दुष्प्रभाव देख रहे हैं तथा रोज खबरों के माध्यम से सुन रहे हैं जैसे- फंदा लगाना, मंजिल से कूदकर जान की बलि देना, नसें काटना, कीटनाशी एवं विषैली दवाएं गटक जाना आदि जो आज सिर्फ सामान्य हो गई है ये हम सभी के लिए दुखदाई एवं चिंतनीय है क्योंकि अवसाद सामान्य अवस्था से शुरू होकर किस परिणाम तक पहुंचता है इसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। अवसाद जो व्यक्ति के उग्र स्वभाव को बढ़ावा, दिमाग की कार्यक्षमता को क्षीण, देर रात तक नींद न आना, घण्टों तक विचारों में खोना, सही निर्णय नहीं ले पाना आदि कई कारणों को जन्म देता है जो कि नकारात्मक परिणाम देते हैं। लेकिन खास बात यह है कि इनके पीछे कुछ तो ऐसी वजह होगी जो डिप्रेशन को बढ़ावा देती है आज हम उन्हीं वजहों का मौटे तौर पर आगे जिक्र कर रहे हैं -
१. पहला कारण मेरे हिसाब से यही हो सकता है कि अभिभावकों द्वारा बच्चों की शिक्षा के प्रारंभ अवस्था से ही हॉस्टल या घर से बाहर किसी शहर में भेजना और बच्चों को जिम्मेदारी एवं नियमों में ढालना शुरू कर देते हैं। जिस कारण बच्चे शुरुआत से ही दबाव में रहना शुरू हो जाते हैं और खुद को अकेलापन में महसूस करते हैं क्योंकि वो परिवार के स्नेह को कभी महसूस ही नहीं कर पाते हैं। जिस कारण उनके स्वभाव की प्रकृति तथा परिवार के प्रति उनका रवैया बदल जाता है और वो ज़िन्दगी को बोझ समझने लगते हैं।
२. हर बच्चों में कुछ विशेष रूचि एवं खासियत होती है जिनको अभिभावकों को जानना बहुत जरूरी है लेकिन आज का मानव जिन्दगी की दौड़ में इतना व्यस्त हैं कि उनको बच्चों के साथ रहने तथा उनकी भावनाओं को समझने की फुर्सत ही नहीं है जिससे बच्चे की इच्छाएं हमेशा दबकर रह जाती है और अभिभावक की यह गलती ही आगे जाकर युवाओं को मौत के मुंह में जाने के लिए विवश कर देती है। क्योंकि बच्चें उस क्षेत्र में खुद को समायोजित नहीं कर पाते हैं।
३. तीसरा कारण: जो बड़े पैमाने पर बढ़ रहे मोबाइल के प्रचलन तथा सस्ती दरों में उपलब्ध डाटा जिससे व्यक्ति सही उपयोग की बजाय ज्यादा समय गैमिंग, ढेर सारी वेबसाइटों, कई तरह के चैटिंग एप्स, मूविज पर गुजार रहे हैं जिससे व्यक्ति में आधुनिक जीवनशैली का विकास, भौतिक साधनों को प्राप्त करने की तीव्र इच्छाएं को बढ़ावा मिलता है जो कि व्यक्ति के मस्तिष्क पर निरन्तर प्रभाव जमाते हैं और उसके नजरिए को प्रभावित करते हैं जिससे अवसाद के साथ कई नकारात्मकताएं रूप लेती है जैसे- सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकियां, दुष्कर्म की घटनाएं, मर्डर आदि। इसलिए हम सभी को अवसाद से बचने के लिए परिवार के साथ वार्तालाप, अच्छी पुस्तक पढ़ना, विभिन्न प्राणायाम, नकारात्मक वातावरण से खूद को बचाकर तनाव की बिमारी से छुटकारा पाया जा सकता है ।
मेरी कलम युवाओं के हमेशा साथ रहेगी।
देवासी जगदीश - कोडका, जालोर (राजस्थान)