संदेश
जागरूकता - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
जागरूकता फैलाओ सभी, कर शुरू एक अभियान। देखो बढ़ी जागरुकता यदि, तभी बढ़ेगा निज अभिमान।। जागरूकता देती स्वस्थ पहचान, शुद्ध भोजन करे जीवन आ…
नारी सम्मान - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
नारी बेटी है बहन है, मां है, पत्नी है, नारी के विविध रूप हैं, रिश्ते हैं भारतीय संस्कृति में नारी की पूजा होती है। परंतु नारियों के …
स्वच्छ भारत - गीत - संजय राजभर "समित"
स्वस्थ भारत, सुयोग भारत ।। स्वच्छ भारत, निरोग भारत ।। हर मुखड़े पर मुस्कान हो ऐसी हवा का वितान हो, तन-मन झूमे, लोग भारत । स्वच्छ …
दोस्ती - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
साथियो दोस्ती में एक दुसरे के लिए मर मिट जाना है, न भेद-भाव हो संयम हो समर्पित हो जाना है। स्वार्थ को छोड़ो और छोड़ो पराया पन, …
मौन - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
आवाज नहीं कोई रहा उठा, है किसी के साथ नहीं घटा? यह समाज भी सह रहा सभी , बेटियां बहुएं सुरक्षित नहीं।। मनुष्यता अब खो गई कहीं, भीष्म से…
फूल-सी कलियों को खिलने दो - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
अभी-अभी तो यह खिली है, बहुत ही कच्ची कली है, ना छेड़ो तुम, इन्हेंं निकलने दो, फूल-सी कलियों को खिलने दो। यह सुंदर रूप में खिलेगी, र…
होम आइसोलेशन - व्यंग्य (कथा) - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
भाई जांच करो और साथ में वह भी अंग्रेजी में खरी खोटी मिल जाए तो भला मोबाइल नंबरों का क्या दोष ?और वह भी स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारिय…
नारी बोल रही हैं - कविता - आशाराम मीणा
उगता सूरज लज्जत रहा है, भारत के अपमान में। घोर अंधेरा चिपक रहा है, चंदा के अरमान में।। धरती माता सिसक रही है, वीरों के बलिदान में। निर…
इन्तज़ार ए मुहब्बत - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
तुम्हारा इन्तज़ार और बेशुमार हसरतें, बीते कितने वासन्तिक और मधुश्रावण प्रिये। जलती रही दावानल व…
बेबस बहुजन बेटी - कविता - प्रीति बौद्ध
उमंग भरा मन था तेरा, उजला सा तन था तेरा।। कोमल कली थी बहुजनों की, उम्मीद लिए सुंदर जीवन की। प्रिय थी तुम सब जन की, खिल रहा था यो मन …
नारी तेरे कितने रूप - कविता - बजरंगी लाल
हे! नारी तुम रखती हो निज कितने ही रूप, सृष्टि में जो कुछ दिखता है सब है तेरा स्वरूप, तेरे बिना जग तिमिरयुक्त है दिखे कहीं ना धूप, तेरे…
परहित परम धर्म है बंधु - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
फेंक दिया बेकार समझ एक टुकड़ा वो रोटी का कोई तरसता है उसको कूड़े से उठा कर खाने को, माना की अमीरी का आलम सर पर चढ़ कर है खेल रहा जरा …
शिकार - कविता - दीपक राही
मुझे बहुत समझाया गया, अगर अंधेरा हो तो, घर से अकेले मत निकलना, कभी कोई कुछ भी कहे, तो चुप्पी साध कर आगे बढ़ना, इन सब के बावजूद भी मै, …
पास और दूर - कविता - आलोक कौशिक
वो जब मेरे पास थी थी मेरी ज़िंदगी रुकी हुई अब वो मुझसे दूर है ज़िंदगी फिर से चल पड़ी जब था उसके पास मैं मैं नहीं था कहीं भी मुझमें …
वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ - पुस्तक समीक्षा - कुन्दन पाटिल
वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ यह एक साझा संकलन ही नही एक मिशन भी हैं या यू कहें वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ आंदोलन पर्यावरण, सामाजिक, साहित्यिक प्रो…
हे चारुचन्द्र नव आश किरण - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मन माधव कुसुमित कुसुम गन्ध, नव भोर मुदित नवपल्लव लवंग। सतरंग गगन गुंजित विहंग, अलिगुंज हृदय यौवन तरंग। नँच मन मयूर …
अवधपति! आ जाओ इक बार - मिश्रित छंद - डॉ. अवधेश कुमार अवध
पीत वसन रँग चूनर धानी । ओढ़ चली प्रिय वसुधा रानी ।। देखत रूप गगन हरसाये । मिलन भाव उर भरकर आये ।। प्रेम भाव भरकर अंजलि में - अम…
बेटी बचाओ - कविता - मोहम्मद मुमताज़ हसन
कब तलक मोमबत्तियां जलाते रहेंगे हम! आबरू लूटती रहेगी मातम, मनाते रहेंगे हम! वक़्त बदला, लोग बदले, सोच न बदली, 'फिर फिर निर्भया का…
अबला - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"
एक मासूम सी अधखिली कली को , कुचल मसल डाला दरिंदों ने । क्या था कसूर उसका , क्यों रौंद डाला वहशियों ने । कौन बताए उत्तर , किससे पूछ डाल…
श्रम प्रेम - कविता - विनय विश्वा
ज्येष्ठ की तपती भरी दोपहरी श्याम सलोनी रुप सुनहरी माथे पे है पगड़ी धारी गुरु हथौड़ा हाथ है भारी। मुख मंडल की छटा निराली हर प्रहार है …
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