अवधपति! आ जाओ इक बार - मिश्रित छंद - डॉ. अवधेश कुमार अवध

पीत वसन रँग   चूनर  धानी ।
ओढ़ चली प्रिय वसुधा रानी ।।
देखत  रूप  गगन   हरसाये ।
मिलन भाव उर भरकर आये ।।

प्रेम भाव भरकर अंजलि में -
अम्बर करे निसार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।

वसुधा देख लगी सकुचाने ।
पीत पात लग गये सुखाने ।।
रजनी में शशि राग जगाये ।
सूरज  टीका भाल सजाये ।।

पतझड़ की ऋतु बनकर आई -
नींव नवल आधार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।

क्षितिज पार मिल भये सुखारे ।
धरती - नभ  आपस  में  वारे ।।
सूरज    चंदा     बने    बराती ।
जैसे    दीया    के   सँग बाती ।।

कण - कण में मंगल स्वर गूँजे -
वत्सल शुचिता प्यार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।

मधुमासी   बसंत   अलबेला ।
अरमानों से   सुरभित  मेला ।।
नूतन पल्लव कुसुमित डाली ।
कोयल  कूक  रही मतवाली ।।

नाचत मोर देख घन मोहित -
अकथ धरा श्रृंगार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।

मातु    शारदे    राजें  रसना ।
सुर सप्तक सँग बाजे बजना ।।
महुआ    बेर   आम  बौराये ।
रति अनंग उर अगन जगाये ।।

हे शिवशंकर हे नट नागर -
करो कृपा करतार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।

शरद शिशिर   बारात  समेटे ।
शबनम - मोती ज्योति लपेटे ।।
मुदित   जगत  नैसर्गिक शोभा ।
अलि कलि रूप निहारत लोभा ।।

सतरंगी चूनर ले आया -
ऋतु बसंत सुकुमार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।

डॉ. अवधेश कुमार अवध - गुवाहाटी (असम)

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