पीत वसन रँग चूनर धानी ।
ओढ़ चली प्रिय वसुधा रानी ।।
देखत रूप गगन हरसाये ।
मिलन भाव उर भरकर आये ।।
प्रेम भाव भरकर अंजलि में -
अम्बर करे निसार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।
वसुधा देख लगी सकुचाने ।
पीत पात लग गये सुखाने ।।
रजनी में शशि राग जगाये ।
सूरज टीका भाल सजाये ।।
पतझड़ की ऋतु बनकर आई -
नींव नवल आधार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।
क्षितिज पार मिल भये सुखारे ।
धरती - नभ आपस में वारे ।।
सूरज चंदा बने बराती ।
जैसे दीया के सँग बाती ।।
कण - कण में मंगल स्वर गूँजे -
वत्सल शुचिता प्यार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।
मधुमासी बसंत अलबेला ।
अरमानों से सुरभित मेला ।।
नूतन पल्लव कुसुमित डाली ।
कोयल कूक रही मतवाली ।।
नाचत मोर देख घन मोहित -
अकथ धरा श्रृंगार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।
मातु शारदे राजें रसना ।
सुर सप्तक सँग बाजे बजना ।।
महुआ बेर आम बौराये ।
रति अनंग उर अगन जगाये ।।
हे शिवशंकर हे नट नागर -
करो कृपा करतार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।
शरद शिशिर बारात समेटे ।
शबनम - मोती ज्योति लपेटे ।।
मुदित जगत नैसर्गिक शोभा ।
अलि कलि रूप निहारत लोभा ।।
सतरंगी चूनर ले आया -
ऋतु बसंत सुकुमार ।
अवधपति !
आ जाओ इक बार ।।
डॉ. अवधेश कुमार अवध - गुवाहाटी (असम)