तुम लौटी तो, पर यूँ लौटना नहीं था - कविता - अदिति

तुम लौटी तो, पर यूँ लौटना नहीं था - कविता - अदिति | अहमदाबाद विमान हादसे पर कविता | Ahmedabad Air India Aeroplane Crash Poetry
मैं तन्हा था…
लेकिन ख़ुश था —
क्योंकि तुम्हारे लौटने की उम्मीद
मेरे पास ज़िंदा थी।
इंतेज़ार एक इबादत बन चुका था
हर पल, हर घड़ी
तुम्हारा नाम लेता था
जैसे कोई साधु मंत्र दोहराता हो
अपने ईश्वर की खोज में।

एयरपोर्ट पर तुमने
मुड़कर कहा था —
"बस थोड़ा इंतेज़ार मेरी जान…"
और फिर वो ‘फ्लाइंग किस’ —
जैसे कोई परिंदा
आख़िरी बार आसमान को छूने से पहले
ज़मीन को नमन करता है।

मैंने तुम्हारे आँचल को
हवा में महसूस कर
अपनी साँसों में बाँध लिया था,
तुम्हारे चले जाने के बाद
मैं रोज़ वही कपड़ा पहनता था
जिसमें तुम्हारी ख़ुशबू रह गई थी।
वो तकिया अब भी बिछा है
जिस पर तुम्हारे सिर का दबाव
आज भी मेरी नींद से लड़ता है।

तुम्हारा सपना —
पूरा आसमान पा लेना —
मुझे कभी डराता नहीं था,
क्योंकि मुझे तुम पर नाज़ था।
तुम्हारे शब्द,
तुम्हारी आँखों की चमक,
तुम्हारी थकी साँसों में भी
आने वाले कल की ललक थी।
और मैं…
बस एक नीड़ था
जहाँ तुम लौट सकती थी
जब पंख भारी हो जाते।

लेकिन फिर —
एक शाम,
समाचार चैनलों ने चुप्पी तोड़ी —
"अहमदाबाद विमान हादसा"
"तकनीकी चूक"
"मृतकों की पहचान जारी…"
और मैं —
बस एक नाम खोजता रहा —
हर लिस्ट में,
हर तस्वीर में —
उम्मीद करता रहा
कि तुम वहाँ नहीं हो।

लेकिन तुम थी…
तुम थी,
पर उस शक्ल में नहीं
जिसे मैंने चूमा था,
न उस आवाज़ में
जिसे मैंने हर रोज़ याद किया।

तुम लौटी —
एक ताबूत में,
सिर्फ़ एक नाम-पट्टिका के साथ
जिस पर लिखा था —
"शव संख्या – 34: पहचानी गई"

मुझे नहीं पता था
कि तुम्हारी उड़ान
सीधे स्वर्ग की ओर थी।
मुझे नहीं बताया गया
कि अब तुम्हारे पंख नहीं हैं —
बस राख है,
जिसे मैंने अपने हाथों से
एक मटके में भर
अपने सीने से लगा लिया।

अब मेरी दुनिया में
कोई रंग नहीं है —
कपड़े पहनता हूँ
तो क़फ़न की तरह लगता है।
चाय पीता हूँ
तो तुम्हारा छूटा हुआ मग रो पड़ता है।
हर उड़ान की आवाज़
एक सिहरन बन गई है
कि कोई और लौटेगा या नहीं।

अब मैं इंतेज़ार नहीं करता…
क्योंकि तुम लौट आई हो,
लेकिन यूँ नहीं,
जैसे लौटना था।

अब मेरी नींद
तुम्हारी तस्वीरों की राख से बनी है।
अब मेरी सुबह
तुम्हारी आवाज़ की चीख़ से टूटती है —
जो उस विमान में शायद
आख़िरी बार निकली होगी
और इस ज़मीन ने उसे
सुन ही नहीं पाया।

तुमने वादा किया था लौटने का —
काश वादा निभाया होता,
या फिर…
वादा ही न किया होता।

अब हर इंतेज़ार एक ताबूत है,
हर मुस्कान अधूरी उड़ान…


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos